होम / गर्भावस्था का चिकित्सीय समापन अधिनियम
आपराधिक कानून
सरमिष्ठा चक्रवर्ती बनाम भारत संघ (2017)
«25-Dec-2025
परिचय:
यह एक ऐतिहासिक निर्णय है जो गर्भवती महिलाओं के सांविधानिक अधिकारों से संबंधित है, जिसके अधीन वे सांविधिक सीमा से परे गर्भावस्था को समाप्त कर सकती हैं, जहाँ गर्भावस्था जारी रखने से गंभीर मानसिक क्षति हो सकती है और भ्रूण में जीवन-घातक असामान्यताएँ होती हैं जिनके लिये कई उच्च जोखिम वाली सर्जरी की आवश्यकता होती है और जीवित रहने की संभावना कम होती है।
तथ्य
- सरमिष्ठा चक्रवर्ती और उनके पति ने संविधान के अनुच्छेद 32 के अधीन एक रिट याचिका दायर कर चिकित्सा बोर्ड के गठन और गर्भसमापन के लिये निदेश देने की मांग की।
- जब मामले की सुनवाई हुई तब पहली याचिकाकर्त्ता 25 सप्ताह की गर्भवती थी, इससे पहले 2015 में साढ़े सात महीने की गर्भावस्था में उसका एक शिशु मृत पैदा हुआ था।
- उच्चतम न्यायालय ने कोलकाता के IPGMER-SSKM अस्पताल में एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया, जिसमें स्त्री रोग विशेषज्ञ, रेडियोलॉजिस्ट, हृदय रोग विशेषज्ञ, नवजात शिशु विशेषज्ञ और हृदय शल्य चिकित्सक सहित सात विशेषज्ञ सम्मिलित थे।
- भ्रूण इकोकार्डियोग्राफी से जटिल हृदय संबंधी असामान्यताओं का पता चला: फालोट की टेट्रालॉजी, इनलेट एक्सटेंशन के साथ बड़ा पेरीमेम्ब्रेनस VSD, VSD के ऊपर से गुजरने वाला बाएं निलय से महाधमनी, फुफ्फुसीय एट्रेसिया और duct/MAPCA पर निर्भर फुफ्फुसीय परिसंचरण।
- मेडिकल बोर्ड ने सर्वसम्मति से यह राय व्यक्त की कि यदि बच्चा जीवित पैदा होता है, तो उसे कई चरणों में हृदय संबंधी सुधारात्मक सर्जरी की आवश्यकता होगी, जिसमें प्रत्येक चरण में मृत्यु दर और रुग्णता दर बहुत अधिक होगी।
- बोर्ड ने निष्कर्ष निकाला कि यदि गर्भावस्था जारी रहती है तो मरीज को गंभीर मानसिक क्षति का खतरा है और 20 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था होते हुए भी विशेष मामले के रूप में गर्भपात की सिफारिश की।
- याचिकाकर्त्ता ने भ्रूण में हृदय संबंधी असामान्यताओं का पता चलने के मद्देनजर स्वेच्छा से गर्भावस्था को जारी न रखने की इच्छा व्यक्त की।
सम्मिलित विवाद्यक
- क्या गर्भावस्था को 20 सप्ताह के बाद समाप्त करने की अनुमति दी जानी चाहिये, यदि भ्रूण में गंभीर हृदय संबंधी असामान्यताएँ हों जिनके लिये कई उच्च जोखिम वाली सर्जरी की आवश्यकता हो और गर्भावस्था जारी रखने से माता को गंभीर मानसिक क्षति का खतरा हो सकता है?
- भ्रूण संबंधी असामान्यताओं से जुड़े असाधारण मामलों में, जो सामान्य जीवन के अनुकूल नहीं हैं और साथ ही माता के मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं से संबंधित हैं, गर्भ का चिकित्सीय समापन की अनुमति देने में न्यायालयों को किन कारकों का ध्यान रखना चाहिये?
- क्या अनुच्छेद 21 के अधीन किसी महिला की प्रजनन संबंधी पसंद और उसके शारीरिक अखंडता के अधिकार में उन मामलों में गर्भ के समापन का अधिकार भी सम्मिलित है जहाँ मेडिकल बोर्ड ऐसी विशेष परिस्थितियों को प्रमाणित करता है जो इस तरह के हस्तक्षेप को उचित ठहराती हैं?
न्यायालय की टिप्पणियां
प्रजनन संबंधी विकल्पों का अधिकार:
- न्यायालय ने सुचिता श्रीवास्तव बनाम चंडीगढ़ प्रशासन (2009) के मामले का हवाला देते हुए इस बात पर बल दिया कि प्रजनन संबंधी विकल्प चुनने का महिला का अधिकार अनुच्छेद 21 के अधीन व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक अविभाज्य भाग है। उसे शारीरिक अखंडता का एक पवित्र अधिकार प्राप्त है।
मामले-विशिष्ट मूल्यांकन:
- न्यायालय ने कहा कि इस प्रकार के मामले अपने तथ्यों पर आधारित होने चाहिये, जो मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट और गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम, 1971 के अधीन आवश्यक सहमति पर निर्भर करते हैं।
माता का मानसिक स्वास्थ्य:
- न्यायालय ने पाया कि मेडिकल बोर्ड ने स्पष्ट रूप से बताया था कि यदि गर्भावस्था जारी रहती है तो माता को मानसिक आघात लगेगा, और यदि बच्चा जीवित पैदा होता है तो कई समस्याएँ होंगी।
अन्य मामलों से अंतर:
- न्यायालय ने उन मामलों को अलग बताया जिनमें गर्भपात से इंकार कर दिया गया था (सविता सचिन पाटिल और शीतल शंकर साल्वी) इस आधार पर कि उनमें अनिश्चित रोग का पूर्वानुमान था या माता के जीवन को कोई खतरा नहीं था, जबकि इस मामले में बच्चे के लिये गंभीर मानसिक चोट और उच्च मृत्यु दर के जोखिम की स्पष्ट चिकित्सा राय सम्मिलित थी।
निर्णयाधार:
- निर्णय के आधार पर यह स्थापित किया गया कि जहाँ एक मेडिकल बोर्ड यह प्रमाणित करता है कि गर्भावस्था जारी रखने से माता को गंभीर मानसिक क्षति का खतरा है और भ्रूण में जटिल जानलेवा असामान्यताएँ हैं जिनके जीवित रहने की संभावना कम है और जिसके लिये कई उच्च जोखिम वाले हस्तक्षेपों की आवश्यकता है, वहाँ अनुच्छेद 21 के अधीन महिला के प्रजनन स्वायत्तता और शारीरिक अखंडता के मौलिक अधिकार को मान्यता देते हुए, सांविधिक सीमाओं से परे गर्भपात की अनुमति एक विशेष मामले के रूप में दी जा सकती है।
निष्कर्ष:
उच्चतम न्यायालय ने याचिका स्वीकार कर ली और IPGMER-SSKM अस्पताल, कोलकाता में तत्काल गर्भसमापन का निदेश दिया। न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि यह निर्णय व्यापक चिकित्सा बोर्ड की रिपोर्ट पर आधारित था, जिसमें भ्रूण में गंभीर हृदय संबंधी असामान्यताओं, उच्च मृत्यु दर और रुग्णता जोखिम तथा माता को गंभीर मानसिक क्षति के खतरे की पुष्टि की गई थी।