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आपराधिक कानून
कुटुंब न्यायालय को चेतावनी परिपत्र (लुकआउट सर्कुलर) जारी करने का अधिकार नहीं है
«26-Dec-2025
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मोहम्मद अज़ीम बनाम सबीहा और अन्य "कुटुंब न्यायालय को दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अधीन पारित आदेश को निष्पादित करते समय 'लुक आउट सर्कुलर' जारी करने का कोई अधिकार नहीं है, जो पत्नियों, संतान और माता-पिता के भरणपोषण से संबंधित है।" न्यायमूर्ति ललिता कन्नेगंती |
स्रोत: कर्नाटक उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
कर्नाटक उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति ललिता कन्नेगंती ने मोहम्मद अज़ीम बनाम सबीहा और अन्य (2025) के मामले में यह निर्णय दिया कि कुटुंब न्यायालय को दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 125 के अधीन पारित आदेश को निष्पादित करते समय लुक आउट सर्कुलर (LOC) जारी करने की शक्ति नहीं है, जो पत्नियों, संतान और माता-पिता के भरणपोषण से संबंधित है।
मोहम्मद अजीम बनाम सबीहा और अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- याचिकाकर्त्ता मोहम्मद अजीम ने मंगलुरु स्थित कुटुंब न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश द्वारा दिनांक 30.10.2024 को पारित एक आदेश को चुनौती दी।
- कुटुंब न्यायालय ने पत्नी के आवेदन को स्वीकार कर लिया था और भरणपोषण आदेश का पालन न करने के लिये पति के विरुद्ध 'लुक आउट सर्कुलर' जारी किया था।
- याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि भरणपोषण आदेश को निष्पादित करते समय कुटुंब न्यायालय के पास लुक आउट सर्कुलर जारी करने की अधिकारिता नहीं थी।
- याचिकाकर्त्ता ने राजनेश बनाम नेहा और अन्य (2021) के मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय पर विश्वास किया, जिसमें यह माना गया था कि भरणपोषण के संदाय न करने के लिये बलपूर्वक प्रवर्तन उपायों का सहारा केवल अंतिम उपाय के रूप में लिया जाना चाहिये जब व्यतिक्रम जानबूझकर और अवज्ञापूर्ण पाया जाता है।
- प्रत्यर्थी-पत्नी के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि एक बार भरणपोषण आदेश पारित हो जाने के बाद, पति का यह कर्त्तव्य है कि वह उसका पालन करे, और चूँकि याचिकाकर्त्ता देश से बाहर रह रहा था और उसने इसका पालन नहीं किया, इसलिये कुटुंब न्यायालय के पास लुक आउट सर्कुलर (LOC) जारी करने के सिवाय कोई अन्य विकल्प नहीं था।
- न्यायालय ने कहा कि लुक आउट सर्कुलर (LOC) जारी करने का अनुरोध करने वाले अधिकारियों के लिये यह एक प्रथा बन गई थी कि वे उन्हें बंद करने के लिये कोई कदम नहीं उठाते थे, भले ही न्यायालय के आदेशों में ऐसे परिपत्रों को निलंबित करने का निदेश दिया गया हो।
न्यायालय की क्या टिप्पणियां थीं?
- न्यायालय ने याचिकाकर्त्ता के तर्कों में गुण-दोष पाया और यह निर्णय दिया कि धारा 125 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन पारित आदेश को निष्पादित करते समय कुटुंब न्यायालय को लुक आउट सर्कुलर जारी करने का कोई अधिकार नहीं है।
- न्यायमूर्ति कन्नेगंती ने टिप्पणी की कि धारा 125 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन भरणपोषण आदेश न्यायिक आदेशों के माध्यम से लागू किया जाने वाला एक सिविल दायित्त्व बनाता है, और यदि कोई पक्षकार व्यतिक्रम करता है, तो उपलब्ध उपचार संपत्ति की कुर्की, गिरफ्तारी वारण्ट जारी करने या सिविल कारावास के माध्यम से निष्पादन है।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि लुक आउट सर्कुलर का उद्देश्य अभियुक्त व्यक्तियों या अपराधियों को आपराधिक प्रक्रिया से बचने से रोकना है, और भरणपोषण की बकाया राशि की वसूली के लिये इन्हें जारी नहीं किया जा सकता है।
- न्यायालय ने टिप्पणी की कि न्यायालय के आदेश के होते हुए भी लुक आउट सर्कुलर (LOC) जारी रखना अवैध और न्यायालय की अवमानना है, और यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के अधीन प्रत्याभूत प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार का भी उल्लंघन करता है।
- न्यायालय ने पुलिस महानिदेशक को सभी संबंधित अधिकारियों को आवश्यक निर्देश जारी करने का निदेश दिया, यह सुनिश्चित करते हुए कि जब भी कोई न्यायालय लुक आउट सर्कुलर (LOC) को निलंबित करता है, तो इसकी सूचना तुरंत आव्रजन ब्यूरो (Bureau of Immigration) को दी जाए।
- न्यायालय ने निदेश दिया कि लुक आउट सर्कुलर जारी करने का अनुरोध करने वाले अधिकारी पर जिम्मेदारी तय की जाए, ऐसा न करने पर विभागीय कार्यवाही शुरू की जानी चाहिये, यह देखते हुए कि अन्यथा न्यायालय के आदेशों की कोई वैधता नहीं रहेगी।
- न्यायालय ने रजिस्ट्रार जनरल को धारा 125 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन कार्यवाही और निष्पादन से संबंधित सभी न्यायालयों को आदेश की एक प्रति प्रसारित करने का भी निदेश दिया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि ऐसे मामलों में लुक आउट सर्कुलर जारी नहीं किये जा सकते हैं।
- याचिका को स्वीकार करते हुए, उच्च न्यायालय ने कुटुंब न्यायालय द्वारा पारित आदेश को अपास्त कर दिया।
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125/भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144 क्या है?
बारे में:
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 144 एक सामाजिक न्याय उपबंध है जिसका उद्देश्य उपेक्षित पति या पत्नी और संतान की दरिद्रता और आर्थिक कठिनाई को रोकना है। यह प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट को उस पत्नी, धर्मज या अधर्मज संतान को मासिक भरणपोषण, अंतरिम भरणपोषण और कार्यवाही व्यय प्रदान करने का अधिकार देता है, जो स्वयं का भरणपोषण करने में असमर्थ हैं, ऐसे व्यक्ति से जो पर्याप्त साधनों से संपन्न होते हुए भी ऐसा करने से इंकार करता है या उपेक्षा करता है।
प्रमुख सांविधिक विशेषताएँ:
- धारा 144(1): मजिस्ट्रेट को पत्नी और संतान को मासिक भरणपोषण का आदेश देने का अधिकार देती है।
- धारा 144(1) का दूसरा परंतुक: मजिस्ट्रेट को कार्यवाही लंबित रहने के दौरान अंतरिम भरणपोषण और व्यय प्रदान करने की अनुमति देता है।
- धारा 144(1) का तीसरा परंतुक: निदेश देता है कि अंतरिम भरणपोषण आवेदनों का निपटारा आदर्श रूप से नोटिस की तामील की तारीख से 60 दिनों के भीतर किया जाना चाहिये।
- धारा 144(2): भरणपोषण आवेदन या आदेश की तिथि से देय होगा, जैसा मजिस्ट्रेट उचित समझे।
- धारा 144(3): भरणपोषण का संदाय न करने पर वारण्ट कार्यवाही और एक मास तक का कारावास हो सकता है।
- धारा 144(4): जारता की दशा में रहना, पर्याप्त कारण के बिना पति के साथ रहने से इंकार, या पृथक् रहने के लिये आपसी सहमति के मामलों में पत्नी को भरणपोषण प्राप्त करने से अयोग्य ठहराता है।
- धारा 145(2) के अधीन प्रक्रियात्मक स्पष्टता प्रदान की गई है, जिसमें यह अनिवार्य है कि साक्ष्य प्रत्यर्थी या उसके अधिवक्ता की उपस्थिति में अभिलिखित किया जाना चाहिये, जिसमें एकपक्षीय कार्यवाही और तीन मास के भीतर पर्याप्त हेतुक दिखाने पर ऐसे आदेशों को अपास्त करने का उपबंध है।