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बौद्धिक संपदा अधिकार
भारत में पेटेंट और पेटेंट विधि
«20-Dec-2025
परिचय
पेटेंट बौद्धिक संपदा संरक्षण के सबसे महत्त्वपूर्ण रूपों में से एक है। ये आविष्कारकों को एक निश्चित अवधि के लिये उनके आविष्कारों पर अनन्य अधिकार प्रदान करते हैं, जिससे नवाचार और तकनीकी प्रगति को प्रोत्साहन मिलता है।
- स्वतंत्रता के बाद से भारत में पेटेंट प्रणाली में महत्त्वपूर्ण विकास हुआ है, जिसमें प्रमुख सुधारों ने भारतीय विधि को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाया है और साथ ही घरेलू आवश्यकताओं को भी पूरा किया है।
पेटेंट
- पेटेंट बौद्धिक संपदा के संरक्षण का एक रूप है।
- यह किसी आविष्कार के लिये दिया गया एक अनन्य अधिकार है, जो एक उत्पाद या प्रक्रिया है जो सामान्यतः किसी काम को करने का एक नया तरीका प्रदान करता है, या किसी समस्या का एक नया तकनीकी समाधान प्रस्तुत करता है।
- पेटेंट प्राप्त करने के लिये, आविष्कार के बारे में तकनीकी जानकारी पेटेंट आवेदन में सार्वजनिक रूप से प्रकट की जानी चाहिये।
- इस प्रकटीकरण की आवश्यकता यह सुनिश्चित करती है कि ज्ञान समाज के लिये उपलब्ध हो जाए, जिससे आगे नवाचार और तकनीकी प्रगति को बढ़ावा मिले।
किसी आविष्कार के लिये पेटेंट योग्यता के मानदंड
भारत में किसी आविष्कार को पेटेंट संरक्षण प्राप्त करने के लिये निम्नलिखित तीन अनिवार्य शर्तों को पूरा करना आवश्यक है:
- नवीनता: आविष्कार नवीन होना चाहिये तथा पूर्व विद्यमान ज्ञान या पूर्व कला का भाग नहीं होना चाहिये। आवेदन की तिथि से पूर्व इसका विश्व के किसी भी स्थान पर प्रकटीकरण या प्रकाशन नहीं हुआ होना चाहिये।
- आविष्कारशील चरण: आविष्कार में एक आविष्कारशील चरण सम्मिलित होना चाहिये, जिसका अर्थ है कि यह विद्यमान ज्ञान की तुलना में एक तकनीकी उन्नति का प्रतिनिधित्व करे या इसका आर्थिक महत्त्व हो या दोनों। यह संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ व्यक्ति के लिये स्पष्ट नहीं होना चाहिये।
- औद्योगिक अनुप्रयोग: आविष्कार औद्योगिक अनुप्रयोग के योग्य होना चाहिये, जिसका अर्थ है कि इसे किसी उद्योग में बनाया या उपयोग किया जा सके। इससे यह सुनिश्चित होता है कि पेटेंट केवल व्यावहारिक आविष्कारों के लिये ही दिये जाएं, न कि अमूर्त सिद्धांतों के लिये।
पेटेंट की अवधि
- भारत में प्रत्येक पेटेंट की अवधि पेटेंट आवेदन दाखिल करने की तारीख से बीस वर्ष होती है, चाहे वह अनंतिम या पूर्ण विनिर्देश के साथ दाखिल किया गया हो।
- इस अवधि की समाप्ति के बाद, आविष्कार सार्वजनिक क्षेत्र में आ जाता है और इसका उपयोग कोई भी स्वतंत्र रूप से कर सकता है।
पेटेंट अधिनियम, 1970
- भारत में पेटेंट प्रणाली को नियंत्रित करने वाली प्रमुख विधि पेटेंट अधिनियम, 1970 है।
- यह अधिनियम वर्ष 1972 में लागू हुआ और इसने भारतीय पेटेंट और डिजाइन अधिनियम, 1911 का स्थान लिया।
- यह अधिनियम यह सुनिश्चित करने के लिये बनाया गया था कि पेटेंट केवल वास्तविक आविष्कारों के लिये ही दिए जाएं और आवश्यक वस्तुओं के एकाधिकार को रोका जा सके।
पेटेंट (संशोधन) अधिनियम, 2005
इस अधिनियम को पेटेंट (संशोधन) अधिनियम, 2005 द्वारा संशोधित किया गया था, जिसने भारतीय पेटेंट विधि को TRIPS (व्यापार-संबंधित बौद्धिक संपदा अधिकार) करार के अधीन अंतरराष्ट्रीय दायित्त्वों के अनुरूप लाने के लिये कई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन पेश किये। प्रमुख संशोधन निम्नलिखित हैं:
- उत्पाद पेटेंट का विस्तार: उत्पाद पेटेंट संरक्षण को खाद्य पदार्थ, औषधियाँ, रसायन और सूक्ष्मजीवों सहित प्रौद्योगिकी के सभी क्षेत्रों तक विस्तारित किया गया। यह पिछली व्यवस्था से एक बड़ा परिवर्तन था, जिसमें इन क्षेत्रों में केवल प्रक्रिया पेटेंट की अनुमति थी।
- अनन्य विपणन अधिकारों (EMRs) का निरसन: संशोधन के बाद, अनन्य विपणन अधिकारों (EMRs) से संबंधित प्रावधानों को निरस्त कर दिया गया है। EMRs एक संक्रमणकालीन तंत्र था जो उत्पाद पेटेंट उपलब्ध न होने की अवधि के दौरान सीमित सुरक्षा प्रदान करता था।
- अनिवार्य लाइसेंसिंग: अनिवार्य लाइसेंस प्रदान करने का प्रावधान लागू किया गया है। इसके अधीन सरकार कुछ विशेष परिस्थितियों में, जैसे कि जब पेटेंट प्राप्त आविष्कार आम जनता के लिये उचित मूल्य पर उपलब्ध न हो, पेटेंटधारक की सहमति के बिना किसी अन्य व्यक्ति को पेटेंट प्राप्त उत्पाद का उत्पादन करने की अनुमति दे सकती है।
- विरोध संबंधी प्रावधान: पेटेंट जारी होने से पहले और जारी होने के बाद विरोध से संबंधित प्रावधान भी लागू किये गए हैं। पेटेंट जारी होने से पहले विरोध के अधीन कोई भी व्यक्ति पेटेंट आवेदन को जारी होने से पहले उसका विरोध कर सकता है, जबकि जारी होने के बाद विरोध के अधीन इच्छुक पक्ष जारी किये गए पेटेंट को जारी होने के एक वर्ष के भीतर चुनौती दे सकते हैं।
पेटेंट (संशोधन) नियम, 2021
पेटेंट (संशोधन) नियम, 2021 ने पेटेंट प्रणाली को अधिक सुलभ और कुशल बनाने के लिये महत्त्वपूर्ण परिवर्तन पेश किये, जिसमें दो प्रमुख सुधारों पर ध्यान केंद्रित किया गया:
शैक्षणिक संस्थानों के लिये पेटेंट शुल्क घटाया गया:
- शैक्षणिक संस्थान अनुसंधान गतिविधियों में संलग्न होते हैं जहाँ प्रोफेसर, शिक्षक और छात्र नई प्रौद्योगिकियां विकसित करते हैं जिनके वाणिज्यीकरण के लिये पेटेंट संरक्षण की आवश्यकता होती है।
- पहले संस्थानों को बड़े आवेदकों के लिये उच्च शुल्क का संदाय करना पड़ता था, जो पेटेंट दाखिल करने के लिये एक हतोत्साहक के रूप में काम करता था।
- अधिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये, पेटेंट नियम, 2003 के अधीन आधिकारिक शुल्क को 2021 के संशोधन के माध्यम से कम कर दिया गया है।
- पेटेंट दाखिल करने और उसकी विधिक कार्यवाही में 80% की छूट का लाभ सभी शैक्षणिक संस्थानों को दिया गया है, जबकि पहले यह सुविधा केवल सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त शैक्षणिक संस्थानों को ही उपलब्ध थी।
त्वरित परीक्षा प्रणाली का विस्तार:
- त्वरित परीक्षा प्रणाली से पेटेंट परीक्षा का समय काफी कम हो जाता है, और सबसे तेजी से पेटेंट केवल 41 दिनों में प्रदान किया गया है।
- आरंभ में केवल स्टार्टअप्स के लिये उपलब्ध यह सुविधा अब 8 और श्रेणियों तक विस्तारित कर दी गई है:
- लघु एवं मध्यम उद्यम (Small and Medium Enterprises-(SME))
- महिला आवेदक
- सरकारी विभाग
- केंद्र, प्रांतीय या राज्य अधिनियम द्वारा स्थापित संस्थाएँ
- सरकारी कंपनियाँ
- सरकार द्वारा पूर्णतः या काफी हद तक वित्तपोषित संस्थान
- पेटेंट प्रॉसिक्यूशन हाइवे (PPH) के अंतर्गत आवेदक
- पेटेंट प्रॉसिक्यूशन हाइवे (PPH), सहभागी पेटेंट कार्यालयों के बीच सूचना साझा करके पेटेंट अभियोजन प्रक्रिया को तेज करने के लिये की गई पहलों का एक समूह है।
भारत में पेटेंट का प्रशासन
भारत में पेटेंट का प्रशासन पेटेंट, डिज़ाइन और व्यापार चिह्न (ट्रेडमार्क) के नियंत्रक महालेखाकार द्वारा किया जाता है, जो वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग के नियंत्रण में कार्य करता है। आवेदकों की सुविधा के लिये पेटेंट कार्यालय की भारत भर के विभिन्न शहरों में शाखाएँ हैं।
भारत में पेटेंट प्रणाली आविष्कारकों, उद्योग और जनता की आवश्यकतओं को संतुलित करने के लिये निरंतर विकसित हो रही है, यह सुनिश्चित करते हुए कि नवाचार को प्रोत्साहित किया जाए और साथ ही आवश्यक प्रौद्योगिकियों और उत्पादों तक पहुँच बनी रहे।