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आपराधिक कानून

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के अधीन बरामदगियाँ

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 19-Dec-2025

शेख शबुद्दीन बनाम तेलंगाना राज्य 

"गिरफ्तारी के समय अभियुक्त द्वारा सौंपे गए सामान को धारा 27 के अधीन बरामदगी नहीं माना जा सकताक्योंकि उसमें कोई छिपाव नहीं था।"

न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

उच्चतम न्यायालय नेशेख शबुद्दीन बनाम तेलंगाना राज्य (2025) के मामलेमें निर्णय दिया कि व्यक्तिगत तलाशी के दौरान अभियुक्त से बरामद वस्तुओं को भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 27 के अधीन खोज के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है। 

  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि धारा 27 केवल तभी लागू होती है जब अभियुक्त ने किसी वस्तु को छिपाया हो और उसकी खोज प्रकटीकरण का प्रत्यक्ष परिणाम हो। 

शेख शहाबुद्दीन बनाम तेलंगाना राज्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • यह मामलाएक महिला की हत्यासे जुड़ा हैजिसे उसके पति ने एक सुबह एक गाँव के पास छोड़ दिया थाजिसके बाद वह लापता हो गई और उससे संपर्क नहीं हो सका। 
  • उसका शव अगले दिन पास की सड़क के किनारे झाड़ियों में मिला। 
  • अभियोजन पक्ष ने अभिकथित किया कि तीन अभियुक्तों ने उसका पीछा कियाउसे एक सुनसान जगह में ले जाकर उसके साथ बलात्कार किया और साक्ष्य मिटाने के लिये उसका गला काट दिया। 
  • उन पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 और 376घ के साथ धारा 34 के अधीनसाथ ही अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के प्रावधानों के अधीन आरोप लगाए गए थे। 
  • उन्हें भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 और 376घ के साथ धारा 34 के अधीनसाथ ही अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के प्रावधानों के अधीन दोषसिद्ध ठहराया गया था। 
  • विचारण न्यायालय नेमृत्युदण्ड आदेश पारित किया गया थाजिसे उच्च न्यायालय ने कथित संस्वीकृति कथनों तथा धारा 27 के अंतर्गत दर्शाई गई कथित बरामदगियों पर महत्त्वपूर्ण रूप से निर्भर करते हुएदया अथवा परिहार के बिना आजीवन कारावास में परिवर्तित कर दिया। 
  • उच्चतम न्यायालय को यह मूल्यांकन करने के लिये कहा गया था कि क्या इस प्रकार की बरामदगियाँ तथा प्रकटीकरण विधि की दृष्टि से वैध थे। 

न्यायालय की क्या टिप्पणियां थीं? 

  • न्यायालय ने माना कि "बरामद" की गई सामग्रीगिरफ्तारी के समयही अभियुक्त के कब्जे में थी। 
  • ये चीजें नियमित व्यक्तिगत जांचके दौरान सौंपी गईंइन्हें किसी गुप्त स्थान से नहीं खोजा गया। 
  • इसलियेधारा 27 लागू नहीं होती क्योंकि: 
    • इसमेंपहले से कोई छिपाव नहीं था। 
    • यह खोज प्रकटीकरण का परिणाम नहींथी । 
  • न्यायालय ने टिप्पणी की कि "गिरफ्तारी के समयजब पुलिस द्वारा केवल तलाशी लेने पर ही अभियुक्त के शरीर से भौतिक वस्तुएँ जब्त की जा सकती थींतो इसे धारा 27 के अधीन बरामदगी में परिवर्तित का प्रयास किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं है।" 
  • दोषसिद्धि को बरकरार रखतेहुएन्यायालय ने दण्ड को बिना किसी परिहार के आजीवन कारावास से संशोधित करकेबिना किसी परिहार के 25 वर्ष के कारावास में परिवर्तित कर दिया। 

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 क्या है? 

बारे में: 

  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 ने इस नियम में एकसीमित अपवादबनाया कि पुलिस के समक्ष किये गए संस्वीकृति कथन अग्राह्य हैं।  
  • इसमेंअभियुक्त के कथन केकेवल उसी भाग कोसाबित करने की अनुमति दी गई थी जो स्पष्ट रूप से दी गई जानकारी के परिणामस्वरूपपता चले तथ्य से संबंधित हो। 

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के प्रमुख उपबंध: 

  • यह केवल तभी लागू होता है जब अभियुक्तपुलिस अभिरक्षा मेंहो । 
  • यह केवल उस जानकारी के भाग कोसाबित करने की अनुमति देता हैजो प्रत्यक्षत: किसी सुसंगत तथ्य (जैसेहथियारचोरी की संपत्ति) की खोज की ओर ले जाती है। 
  • इसके पीछे तर्क यह है कि खोज सेकथन के उस भाग कोविश्वसनीयता मिलती है। 

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 को लागू करने के लिये आवश्यक शर्तें: 

  • यह पेरुमल राजा उर्फ ​​पेरुमल बनाम राज्यपुलिस निरीक्षक द्वारा प्रतिनिधित्व (2023)के मामले में निर्धारित किया गया था, जहाँ न्यायालय ने निम्नलिखित निर्णय दिया:  
    • सबसे पहलेतथ्यों की खोज होनी चाहिये। ये तथ्य अभियुक्त व्यक्ति से प्राप्त जानकारी के परिणामस्वरूप सुसंगत होने चाहिये 
    • दूसरेऐसे तथ्य की खोज के संबंध में साक्ष्य दिया जाना आवश्यक है। इसका अर्थ यह है कि यह तथ्य पहले से ही पुलिस को ज्ञात नहीं होना चाहिये 
    • तीसरासूचना प्राप्त होने के समयअभियुक्त पुलिस की अभिरक्षा में होना चाहिये।  
    • अंत मेंकेवल उतनी ही जानकारी ग्राह्य है जो इस प्रकार खोजे गए तथ्य से स्पष्ट रूप से संबंधित हो। 
    • इस खोजे गए तथ्य में निम्नलिखित बातें सम्मिलित होंगी: 
      • वह "स्थान" जहाँ से वस्तु प्राप्त होती है। 
      • इस संबंध में अभियुक्त का ज्ञान। 

भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA), 2023 में उपबंध: 

  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 की सामग्री को अब भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA)(पुलिस के समक्ष संस्वीकृति) कीधारा 23 के उपबंध के रूप में सम्मिलित किया गया है।  
  • यह परंतुक उसी नियम को बरकरार रखता है: 
    अभियुक्त के कथन का केवल वही भाग ग्राह्य है जो प्रत्यक्षत साक्ष्य प्राप्ति की ओर ले जाता है।