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आपराधिक कानून

बाल दुर्व्यापार के साक्ष्यों पर उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देश: पीड़ित के परिसाक्ष्य की सुरक्षा

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 20-Dec-2025

स्रोत:द हिंदू 

परिचय 

दिसंबर 2025 मेंउच्चतम न्यायालय ने भारत में बाल दुर्व्यापार और वाणिज्यिक लैंगिक शोषण की "बेहद चिंताजनक वास्तविकता" को संबोधित करते हुए एक महत्त्वपूर्ण निर्णय दिया। निर्णय के लेखक न्यायमूर्ति बागची ने कहा कि सुरक्षात्मक विधियों के होते हुए भीबाल दुर्व्यापार संगठित आपराधिक गिरोहों के माध्यम से फल-फूल रहा हैजो भर्तीपरिवहनआश्रय और शोषण के विभिन्न चरणों में जटिल और बहुस्तरीय संरचनाओं के साथ काम करते हैं।   

  • इस निर्णय ने बाल दुर्व्यापार के मामलों में साक्ष्यों का मूल्यांकन करने के लिये व्यापक दिशानिर्देश स्थापित कियेजिसमें इस बात पर बल दिया गया कि न्यायालयों को केवल मामूली विसंगतियों के कारण दुर्व्यापार किये गए बच्चे की गवाही पर अविश्वास नहीं करना चाहिये 

बाल दुर्व्यापार नेटवर्क की प्रकृति क्या है? 

संरचनात्मक विशेषताएँ: 

  • संगठित अपराध क्रियाकलाप देखने में स्वतंत्र इकाइयों के रूप में काम करते हैंजिनके कपटपूर्ण अंतर्संबंधों को छल और कपट के माध्यम से भेष बदलकर निर्दोष पीड़ितों को प्रवंचित किया जाता है। 
  • नेटवर्क में जटिल और स्तरित संरचनाएं होती हैं जो अवयस्क पीड़ितों की भर्तीपरिवहनआश्रय और शोषण के विभिन्न स्तरों पर काम करती हैं। 
  • अपराध से जुड़े गिरोह भर्तीपरिवहनआश्रय देने और शोषण जैसे क्षेत्रों में काम करते हैंजिससे पीड़ितों के लिये इन प्रक्रियाओं के आपसी तालमेल को सटीक और स्पष्ट रूप से बयान करना मुश्किल हो जाता है। 

परिचालनात्मक वास्तविकता: 

  • अपराध के इन विभिन्न वर्गों के संचालन का बिखरा हुआ और स्पष्ट रूप से असंबद्ध तरीका पीड़ितों के परिसाक्ष्य के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न करता है। 
  • संगठित अपराध नेटवर्क के विरुद्ध तुरंत विरोध न करने के लिये पीड़ितों को दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिये 
  • इस तरह के अपराध जटिलबहुस्तरीय संरचनाओं के माध्यम से संचालित होते हैं जो अक्सर अवयस्कों को गुमराह करते हैं। 

न्यायालयों के लिये प्रमुख दिशानिर्देश क्या हैं? 

पीड़ित के परिसाक्ष्य के साथ व्यवहार: 

  • मानव दुर्व्यापार का शिकार हुए बच्चे को न्यायालयों द्वारा सह-अपराधी के रूप में नहीं माना जाना चाहिये 
  • एक पीड़ित साक्षी के रूप में उसके अभिसाक्ष्य को उचित सम्मान और विश्वसनीयता दी जानी चाहिये 
  • यदि पीड़िता का अभिसाक्ष्य विश्वसनीय और ठोस प्रतीत होता हैतो केवल उसके परिसाक्ष्य ही पर्याप्त माना जाना चाहिये 
  • यदि पीड़ित का परिसाक्ष्य विश्वसनीय और ठोस हो तो उसके अकेले परिसाक्ष्य के आधार पर भी दोष सिद्ध किया जा सकता है। मानव दुर्व्यापार के शिकार व्यक्ति के परिसाक्ष्य को उतना ही महत्त्व दिया जाना चाहिये जितना कि किसी घायल साक्षी के परिसाक्ष्य को। 

मामूली विसंगतियों को संभालना: 

  • न्यायालयों को किसी मानव दुर्व्यापार के पीड़ित बच्चे के परिसाक्ष्य पर केवल इसलिये अविश्वास नहीं करना चाहिये क्योंकि उसके साक्ष्यों में मामूली विसंगतियां हैं। 
  • मामूली विसंगतियों को पीड़ित के साक्ष्य को खारिज करने का आधार नहीं बनाया जाना चाहिये 
  • पीड़ित के आघात और परिस्थितियों के प्रति संवेदनशीलता के साथ परिसाक्ष्य का मूल्यांकन किया जाना चाहिये 

न्यायालयों को किन न्यायिक पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिये? 

सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक भेद्यता: 

  • बच्चे की सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक भेद्यताविशेषकर यदि वह किसी हाशिए पर स्थित या पिछड़े समुदाय से हैतो उस पर विचार किया जाना चाहिये 
  • न्यायालयों को पीड़ित की अंतर्निहित सामाजिक-आर्थिक औरकभी-कभीसांस्कृतिक कमजोरी को ध्यान में रखना चाहिये जब अवयस्क किसी हाशिए पर स्थित या सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से पिछड़े समुदाय से संबंधित हो। 
  • पीड़ित के साक्ष्यों का न्यायिक मूल्यांकन संवेदनशीलता और यथार्थवाद से चिह्नित होना चाहिये 

संवेदनशीलता और यथार्थवाद: 

  • किसी अवयस्क के परिसाक्ष्य पर न्यायिक विचार करते समय संवेदनशीलता बरतनी चाहिये और द्वितीयक उत्पीड़न से बचना चाहिये 
  • अवयस्क मानव दुर्व्यापार पीड़ित के साक्ष्य को अभिलिखित करते समय न्यायालयों को कई महत्त्वपूर्ण बिंदुओं को ध्यान में रखने के लिये कहा गया है। 
  • न्यायालयों को उन कमजोरियों को पहचानना चाहिये जो पीड़ितों को तुरंत विरोध प्रदर्शन करने से रोकती हैं। 

निष्कर्ष 

उच्चतम न्यायालय का यह निर्णय बाल दुर्व्यापार से निपटने का भारत के दृष्टिकोण में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन है। यह स्थापित करते हुए कि दुर्व्यापार किये गए बच्चों को सह-अपराधी के बजाय पीड़ित साक्षी के रूप में माना जाना चाहियेऔर मामूली विसंगतियों के होते हुए भी उनके परिसाक्ष्य को विश्वसनीय माना जाना चाहियेन्यायालय ने आपराधिक न्याय प्रणाली में एक महत्त्वपूर्ण कमी को दूर किया है। 

न्यायमूर्ति बागची द्वारा न्यायिक संवेदनशीलता पर बलसामाजिक-आर्थिक कमजोरियों की पहचान और दुर्व्यापार नेटवर्क की जटिलबहुस्तरीय प्रकृति की समझन्यायालयों को एक ऐसा ढाँचा प्रदान करती है जो साक्ष्य मानकों को दुर्व्यापार पीड़ितों द्वारा सामना की जाने वाली वास्तविकताओं के साथ संतुलित करता है।  

इस निर्णय में यह स्वीकार किया गया है कि बाल दुर्व्यापार न केवल एक अपराध हैअपितु एक "बेहद परेशान करने वाली वास्तविकता" है जो मानवीय गरिमा की नींव को झकझोर देती है। भारत संगठित दुर्व्यापार नेटवर्क के विरुद्ध अपनी लड़ाई जारी रखते हुएये दिशानिर्देश सुनिश्चित करते हैं कि न्याय की प्राप्ति में कमजोर बाल पीड़ितों की आवाज़ सुनी जाएउन पर विश्वास किया जाए और उन्हें उचित महत्त्व दिया जाए। यह निर्णय इस बात पर बल देता है कि बच्चों को नुकसान से बचाने के राज्य के सांविधानिक दायित्त्व के साथ-साथ एक ऐसी न्यायिक प्रणाली भी होनी चाहिये जो उनके परिसाक्ष्य को संवेदनशीलता और विश्वसनीयता के साथ सुने।