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आपराधिक कानून
आवारा कुत्तों को खाना खिलाने से रोकना 'सदोष अवरोध' नहीं है
«23-Dec-2025
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अयप्पा स्वामी बनाम महाराष्ट्र राज्य "किसी व्यक्ति को गैर-निर्दिष्ट क्षेत्र में और उस क्षेत्र में जहाँ स्कूल के बच्चे स्कूल बसों में चढ़ते और उतरते हैं, साथ ही सोसायटी के प्रवेश और निकास बिंदुओं के पास आवारा कुत्तों को खाना खिलाने से रोकना, भारतीय न्याय संहिता की धारा 126 के अर्थ में 'सदोष अवरोध' नहीं कहा जा सकता है।" न्यायमूर्ति रेवती मोहिते-डेरे और संदेश पाटिल |
स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते-डेरे और संदेश पाटिल की खंडपीठ ने अय्यप्पा स्वामी बनाम महाराष्ट्र राज्य (2025) के मामले में एक सोसायटी निवासी के विरुद्ध दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को रद्द कर दिया, जिसने कथित तौर पर सोसायटी के प्रवेश/निकास द्वार और स्कूल बस स्टॉप क्षेत्र सहित गैर-निर्दिष्ट स्थानों पर आवारा कुत्तों को खाना खिलाने से लोगों को रोका था।
अय्यप्पा स्वामी बनाम महाराष्ट्र राज्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- यह मामला पुणे के हिंजेवाड़ी क्षेत्र की एक हाउसिंग सोसाइटी से जुड़ा है, जहाँ कुत्तों के हमले और काटने की लगभग 40 घटनाएँ घटित हुई थीं।
- 12 सितंबर, 2024 को, परिवादकर्त्ता और उसकी सहेलियाँ स्कूल के समय के दौरान सोसायटी परिसर में, विशेष रूप से स्कूल बस पिक-अप क्षेत्र और सोसायटी के प्रवेश/निकास फुटपाथ के पास आवारा कुत्तों को खाना खिला रही थीं।
- सोसाइटी के निवासी अय्यप्पा स्वामी ने परिवादकर्त्ता और उसके मित्रों से कहा कि वे आवारा कुत्तों को एक गैर-निर्दिष्ट स्थान पर खाना खिला रहे थे जो कि उचित भोजन क्षेत्र नहीं था।
- दोनों पक्षकारों के बीच कहासुनी हुई, जिसमें परिवादकर्त्ता ने कथित तौर पर अय्यप्पा स्वामी को गाली दी और धमकी दी।
- अय्यप्पा स्वामी ने पुलिस में परिवाद दर्ज कराया, जिसे कुत्तों को खाना खिलाने वालों के विरुद्ध केवल एक गैर-संज्ञेय परिवाद के रूप में दर्ज किया गया।
- लगभग चार महीने बाद, 24 जनवरी, 2025 को, परिवादकर्त्ता ने अय्यप्पा स्वामी के विरुद्ध भारतीय न्याय संहिता की धारा 126 के अधीन सदोष अवरोध से प्रतिबंधित करने का आरोप लगाते हुए प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज कराई।
- प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) में अभिकथित किया गया है कि अय्यप्पा स्वामी ने परिवादकर्त्ता और उसके मित्रों को सोसायटी परिसर में आवारा कुत्तों को खाना खिलाने पर सदोष अवरोध किया था।
न्यायालय की क्या टिप्पणियां थीं?
- न्यायालय ने भारतीय न्याय संहिता की धारा 126 के सार की परीक्षा की, और पाया कि इसके लिये किसी व्यक्ति को किसी भी दिशा में आगे बढ़ने से रोकने के लिये स्वैच्छिक अवरोध की आवश्यकता होती है, जिस दिशा में आगे बढ़ने का उसे विधिक अधिकार है, जिसका अर्थ है कि व्यक्ति किसी भी दिशा में आगे बढ़ने से पूरी तरह से अवरुद्ध हो जाता है।
- पीठ ने माना कि विशेष क्षेत्रों में, विशेषकर फुटपाथों, सोसायटी के प्रवेश और निकास बिंदुओं और स्कूल बस स्टॉप पर जहाँ बच्चे स्कूल बसों में चढ़ते और उतरते हैं, आवारा कुत्तों को खाना खिलाना बच्चों की सुरक्षा के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है।
- न्यायालय ने निर्णय दिया कि इन क्षेत्रों में आवारा कुत्तों को खाना खिलाने से व्यक्तियों को रोकना, भारतीय न्याय संहिता की धारा 126 के अर्थ में स्वैच्छिक अवरोध नहीं कहा जा सकता है।
- न्यायाधीशों ने पशु जन्म नियंत्रण नियम, 2023 के प्रावधानों का हवाला दिया, जिसमें आवारा कुत्तों के लिये निर्दिष्ट चारागाह क्षेत्रों का प्रावधान है।
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि किसी व्यक्ति को गैर-निर्दिष्ट क्षेत्र में आवारा कुत्तों को सदोष रूप से खाना खिलाने से रोकना भारतीय न्याय संहिता अधिनियम की धारा 126(1) के अर्थ में अवरोध नहीं कहा जा सकता है।
- पीठ ने गौर किया कि कथित अवरोध किसी अवैध कार्य को करने के लिये नहीं अपितु सोसायटी के बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये था, विशेष रूप से सोसायटी में हुई कुत्तों के हमलों और काटने की लगभग 40 घटनाओं को देखते हुए।
- न्यायाधीशों ने प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने में लगभग चार महीने की महत्त्वपूर्ण विलंब को एक अतिरिक्त कारक मानते हुए उसे रद्द कर दिया।
- न्यायालय ने 24 जनवरी, 2025 की प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को अपास्त करने का आदेश दिया।
धारा 126 क्या है?
प्रमुख बिंदु:
- परिभाषा : जो कोई किसी व्यक्ति को स्वेच्छया ऐसे बाधा डालता है कि उस व्यक्ति को उस दिशा में, जिसमें उस व्यक्ति को जाने का अधिकार है, जाने से निवारित कर दे, वह उस व्यक्ति का सदोष अवरोध कहा जाता है।
- आवश्यक तत्त्व : अवरोध स्वैच्छिक, साशय किया गया होना चाहिये और व्यक्ति को उस दिशा में जाने से रोकना चाहिये जिस दिशा में जाने का उसे विधिक रूप से अधिकार है।
- अपवाद : भूमि या जल पर किसी निजी मार्ग को अवरुद्ध करना अपराध नहीं है यदि अवरोध करने वाले व्यक्ति को सद्भावनापूर्वक यह विश्वास हो कि उसे उस मार्ग को अवरुद्ध करने का वैध अधिकार है।
- दण्ड : इस अपराध के लिये एक मास तक की साधारण कारावास, या पाँच हजार रुपए तक का जुर्माना, या दोनों का दण्ड दिया जा सकता है।
- विधिक पूर्ववर्ती : भारतीय न्याय संहिता के अधिनियमन से पहले यह उपबंध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 339 के अंतर्गत आता था।
- दृष्टांत : ‘क’ एक मार्ग में, जिससे होकर जाने का ‘य’ का अधिकार है, सद्भावपूर्वक यह विश्वास न रखते हुए कि उसको मार्ग रोकने का अधिकार प्राप्त है, बाधा डालता है। ‘य’ जाने से तद्द्वारा रोक दिया जाता है। ‘क’ ‘य’ का सदोष अवरोध करता है।
- सद्भावनापूर्ण विश्वास : यह अपवाद इस बात पर बल देता है कि किसी वैध अधिकार के होने के वास्तविक, सद्भावनापूर्ण विश्वास के आधार पर अवरोध उत्पन्न करना अपराध नहीं है।
- आगे बढ़ने का अधिकार : महत्त्वपूर्ण कारक यह है कि क्या बाधित व्यक्ति को उस दिशा में आगे बढ़ने का विधिक अधिकार है जिस दिशा में उसे जाने से रोका जा रहा है।