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सिविल कानून
विनिर्दिष्ट पालन एवं परिसीमा - सिविल प्रक्रिया संहिता का आदेश 7 नियम 11
« »25-Dec-2025
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देवेंद्र श्रीवास्तव और अन्य बनाम मेसर्स आइफेल रिक्रिएशन क्लब (पी.) लिमिटेड "न्यायालय सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 नियम 11 के अधीन आवेदन की परीक्षा करते समय इस आधार पर कार्यवाही नहीं कर सकता कि वादपत्र में किये गए कथन मिथ्य हैं।" न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह |
स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की पीठ ने देवेंद्र श्रीवास्तव और अन्य बनाम मेसर्स आइफेल रिक्रिएशन क्लब (पी.) लिमिटेड (2025) के मामले में , परिसीमा के आधार पर सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश 7 नियम 11 के अधीन वादपत्र को नामंजूर करने से इंकार करने के विचारण न्यायालय के निर्णय को चुनौती देने वाली पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया।
देवेंद्र श्रीवास्तव और अन्य बनाम मेसर्स आइफेल रिक्रिएशन क्लब (पी.) लिमिटेड (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- वादी कंपनी (आइफेल रिक्रिएशन क्लब) ने नवंबर 2021 में संविदा के विनिर्दिष्ट पालन और शाश्वत व्यादेश के लिये वाद दायर किया ।
- पक्षकारों के बीच 12.12.2012 को विक्रय का एक करार हुआ, जिसके अधीन प्रतिवादियों ने 2,65,00,000 रुपए के कुल मूल्य पर संपत्ति बेचने पर सहमति व्यक्त की।
- कुल राशि में से वादी द्वारा 2,40,00,000 रुपए का संदाय किया जा चुका था, जबकि 25,00,000 रुपए विक्रय विलेख निष्पादित करते समय संदाय किये जाने थे।
- करार में यह शर्त रखी गई थी कि विक्रय विलेख करार की तारीख से एक वर्ष के भीतर, अर्थात् दिसंबर 2013 तक निष्पादित किया जाएगा।
- वादी ने दावा किया कि 06.09.2013 को एक अनुपूरक करार किया गया था, और प्रतिवादियों को अतिरिक्त 24,00,000 रुपए का संदाय किया गया था।
- वादी ने अभिकथित किया कि प्रतिवादियों ने विक्रय विलेख के निष्पादन का आश्वासन देना जारी रखा, किंतु संपत्ति पर मौजूद एक भार को हटाने के लिये समय मांगा।
- 17.09.2021 को, प्रतिवादियों ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से विक्रय विलेख को निष्पादित करने से इंकार कर दिया और कहा कि उन्होंने पहले से संदाय की गई राशि को समपहृत कर लिया है।
- प्रतिवादियों ने सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 नियम 11 के अधीन एक आवेदन दायर कर इस आधार पर वादपत्र को नामंजूर करने की मांग की कि यह परिसीमा द्वारा वर्जित है।
- प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि वाद दिसंबर 2013 से तीन वर्ष के भीतर दायर किया जाना चाहिये था (परिसीमन अधिनियम 1963 के अनुच्छेद 54 के अनुसार), जिसकी समय सीमा दिसंबर 2016 में समाप्त हो गई थी, परंतु वाद 2021 में दायर किया गया था।
- विचारण न्यायालय ने 06.05.2022 को प्रतिवादियों के आवेदन को यह कहते हुए नामंजूर कर दिया कि परिसीमा का विवाद्यक विधि और तथ्य का एक मिश्रित प्रश्न है जिसके लिये साक्ष्य की आवश्यकता है।
- अभियुक्तों ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 115 के अधीन पुनरीक्षण याचिका के माध्यम से इस आदेश को चुनौती दी।
न्यायालय की क्या टिप्पणियां थीं?
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 नियम 11 के अधीन आवेदनों पर विचार करते समय, केवल वादपत्र और सहायक दस्तावेज़ों में दिये गए कथनों पर ही विचार किया जा सकता है, बचाव पक्ष के कथनों पर नहीं।
- वादपत्र में दिये गए कथनों को सत्य माना जाना चाहिये, और न्यायालय को बिना किसी विभाजन या विश्लेषण के वादपत्र का सार्थक अध्ययन करना चाहिये।
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि परिसीमा अधिनियम 1963 के अनुच्छेद 54 के दो भाग हैं: (i) जब पालन के लिये कोई तिथि निर्धारित की जाती है, तो परिसीमा उस तिथि से प्रारंभ होती है; (ii) जब कोई तिथि निर्धारित नहीं की जाती है, तो परिसीमा उस समय से प्रारंभ होती है जब वादी को यह सूचना प्राप्त होती है कि पालन से इंकार कर दिया गया है।
- क्या अनुपूरक करार वास्तव में निष्पादित किया गया था, क्या इसमें परिसीमा अवधि को बढ़ाने की क्षमता थी, और संपत्ति पर भार का क्या प्रभाव पड़ा, ये सभी ऐसे मामले थे जिनके लिये साक्ष्य की आवश्यकता थी।
- न्यायालय ने माना कि इन विवादित विवाद्यकों का पता केवल पक्षकारों द्वारा विचारण के दौरान साक्ष्य प्रस्तुत करने के बाद ही लगाया जा सकता है।
- न्यायालय ने पाया कि विचारण न्यायालय ने सही निष्कर्ष निकाला था कि क्या वाद अनुच्छेद 54 के पहले भाग या बाद वाले भाग के अंतर्गत आता है या नहीं, इस विवाद्यक का निर्णय केवल विचारण के दौरान ही किया जा सकता है।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उसकी टिप्पणियां केवल सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 नियम 11 के संकीर्ण दायरे में विवाद्यक की परीक्षा करने के लिये की गई थीं और इन्हें गुण-दोष पर राय की अभिव्यक्ति के रूप में नहीं लिया जाना चाहिये।
- न्यायालय ने निदेश दिया कि विचारण न्यायालय संबंधित पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर मामले का गुण-दोष के आधार पर निर्णय करेगा।
- पुनर्विचार याचिका को बिना किसी लागत संबंधी आदेश के खारिज कर दिया गया।
सिविल प्रक्रिया संहिता का आदेश 7 नियम 11 क्या है?
- सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 7 नियम 11 में एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रियात्मक उपबंध है जो न्यायालयों को प्रारंभिक प्रक्रम में ही विचारण से पहले ही वादपत्र को नामंजूर करने का अधिकार देता है । यह नियम एक परिरक्षण तंत्र के रूप में कार्य करता है जिससे तुच्छ, परेशान करने वाले या विधिक रूप से निराधार वादों से न्यायिक समय और संसाधनों को बर्बाद न करें।
- इस प्रावधान में छह विशिष्ट आधारों का उल्लेख किया गया है जिनके आधार पर न्यायालय किसी वाद को नामंजूर कर सकता है:
- जहाँ वादपत्र में वाद-हेतुक प्रकट नहीं किया गया है (नियम 11(क))।
- जहाँ दावाकृत अनुतोष का मूल्यांकन कम किया गया है और वादी मूल्यांकन को ठीक करने के लिये न्यायालय द्वारा अपेक्षित किये जाने पर उस समय के भीतर जो न्यायालय ने नियत किया है, ऐसा करने में असफल रहता है (नियम 11(ख))।
- जहाँ दावाकृत अनुतोष का मूल्यांकन ठीक है किंतु वादपत्र अपर्याप्त स्टाम्प-पत्र पर लिखा गया है और वादी अपेक्षित स्टाम्प-पत्र के देने के लिये न्यायालय द्वारा अपेक्षित किये जाने पर उस समय के भीतर, जो न्यायालय ने नियत किया है, ऐसा करने में असफल रहता है (नियम 11(ग))।
- जहाँ वाद वादपत्र में के कथन में यह प्रतीत होता है कि वाद किसी विधि द्वारा वर्जित है (नियम 11(घ))।
- जहाँ वादपत्र दो प्रतियों में दाखिल नहीं किया गया है (नियम 11(ङ))।
- जहाँ वादी नियम 9 के उपबंधों का अनुपालन करने में असफल रहता है (नियम 11(च))।
- इस नियम में एक परंतुक सम्मिलित है जो न्यायालय की मूल्यांकन में सुधार करने या स्टांप पेपर उपलब्ध कराने के लिये समय बढ़ाने की क्षमता को सीमित करता है, जब तक कि वादी असाधारण परिस्थितियों से बाधित न हो और इंकार करने से गंभीर अन्याय न हो।