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बौद्धिक संपदा अधिकार

भारतीय प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम के अधीन अंतर्राष्ट्रीय प्रतिलिप्यधिकार संरक्षण

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 05-Nov-2025

परिचय 

प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम, 1957 का अध्याय भारत के क्षेत्रीय अधिकारिता में विदेशी कृतियों के संबंध में प्रतिलिप्यधिकार की मान्यता और प्रवर्तन को नियंत्रित करने वाला सांविधिक ढाँचा स्थापित करता है। ये प्रावधान केंद्र सरकार को विदेशी क्षेत्रों से उत्पन्न कृतियों को प्रतिलिप्यधिकार संरक्षण प्रदान करने में सक्षम बनाते हैंसाथ ही विदेशों में भारतीय कृतियों की सुरक्षा के लिये पारस्परिक व्यवस्था सुनिश्चित करते हैं 

प्रतिलिप्यधिकार को विदेशी कृतियों पर का विस्तारित करने की शक्ति: धारा 40 

  • धारा 40 केंद्र सरकार को आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना के माध्यम से प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम के प्रावधानों को विदेशी कृतियों पर भी लागू करने की विवेकाधीन शक्तियां प्रदान करती है। यह उपबंध सरकार को विदेशी क्षेत्रों में पहली बार प्रकाशित कृतियोंविदेशी लेखकों द्वारा अप्रकाशित कृतियोंऔर प्रकाशन या मृत्यु के समय लेखक के निवास या नागरिकता की स्थिति पर आधारित कृतियों को संरक्षण प्रदान करने का अधिकार देता है। 
  • धारा 40 का परंतुक कई महत्त्वपूर्ण पूर्वापेक्षाएँ और शर्तें स्थापित करता है। सबसे पहलेउन देशों के संबंध में जो उन प्रतिलिप्यधिकार संधियों या अभिसमयों के पक्षकार नहीं हैं जिन पर भारत हस्ताक्षरकर्त्ता हैकेंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि उस विदेशी अधिकारिता में भारतीय कृतियों के लिये पर्याप्त पारस्परिक संरक्षण विद्यमान है या किया गया है। यह अंतर्राष्ट्रीय प्रतिलिप्यधिकार संबंधों के लिये मौलिक पारस्परिकता के सिद्धांत को मूर्त रूप देता है। 
  • सांविधिक प्रावधान केंद्र सरकार को ऐसे आदेशों के अंतर्गत आने वाले कृतियों की श्रेणियों को निर्दिष्ट करनेविदेशी देश की विधि द्वारा प्रदत्त प्रतिलिप्यधिकार संरक्षण की अवधि से अधिक न होने की अवधि विहित करने (2012 के संशोधन के अनुसार अधिनियम के अधीन प्रदान की गई अधिकतम अवधि के अधीन)अधिकारों के उपभोग के लिये शर्तें और औपचारिकताएँ लागू करनेतथा विदेशी देश के विधिक ढाँचे पर विचार करते हुए स्वामित्व प्रावधानों के संबंध में अपवाद बनाने की छूट प्रदान करता है। 

प्रसारण संगठन और प्रस्तुतकर्ता: धारा 40  

  • प्रतिलिप्यधिकार (संशोधन) अधिनियम, 1999 द्वारा जोड़ी गई धारा 40विदेशी अधिकारिताओं के प्रसारण संगठनों और प्रस्तुतकर्ताओं को भी समान सुरक्षा तंत्र प्रदान करती है। यह उपबंध पारंपरिक प्रतिलिप्यधिकार से परे संबंधित अधिकारों को मान्यता देता हैऔर रचनात्मक अभिव्यक्ति और प्रसार के आधुनिक रूपों को संबोधित करता है।  
  • केंद्र सरकारउपधारा (1) के अनुसारनिदेश दे सकती है कि अध्याय के उपबंध विदेशी ट्रांसमीटरों से उत्पन्न प्रसारणोंभारत के बाहर होने वाले प्रस्तुतिकरणविदेशों में प्रकाशित ध्वनि रिकॉर्डिंग में सम्मिलित प्रस्तुतिकरण और विदेशी संगठनों द्वारा प्रसारित अनिश्चित प्रस्तुतिकरण पर लागू होंगे। ऐसी सुरक्षा इस बात पर निर्भर करती है कि विदेशी देश भारतीय प्रसारण संगठनों और प्रस्तुतकर्ताओं को समतुल्य सुरक्षा प्रदान करे। 

अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की कृतियों के बारे में उपबंध: धारा 41 

  • धारा 41 केंद्र सरकार द्वारा नामित अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा निर्मित या प्रथमतः प्रकाशित कृतियों से संबंधित है। जहाँ ऐसी कृतियों को भारत में प्रतिलिप्यधिकार संरक्षण प्राप्त नहीं होतावहाँ यह उपबंध संपूर्ण भारतीय क्षेत्र में सांविधिक प्रतिलिप्यधिकार प्रदान करता है। यह धारा ऐसे संगठनों कोजिनके पास ऐसा दर्जा नहीं हैएक निगमित निकाय की विधिक क्षमता प्रदान करती हैजिससे वे प्रतिलिप्यधिकार धारण कर सकेंउससे संबंधित कार्य कर सकें और उसे लागू कर सकें।  
  • यह उपबंध उन संगठनों पर लागू होता हैजिनमें एक या एक से अधिक संप्रभु शक्तियां या उनकी सरकारें सदस्य हैंजैसा कि केंद्र सरकार के आदेश द्वारा घोषित किया गया हैजो बहुपक्षीय और अंतर-सरकारी निकायों द्वारा उत्पादित कृतियों के संरक्षण की सुविधा प्रदान करता है। 

अधिकारों पर निर्बंधन: धारा 42 और 42 

  • धारा 42 और 42क में उन मामलों में प्रतिशोधात्मक या सुरक्षात्मक उपाय करने का उपबंध है जहाँ विदेशी देश भारतीय कृतियों या अधिकारों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने में असफल रहते हैं। 
  • धारा 42 केंद्र सरकार को भारत में पहली बार प्रकाशित विदेशी लेखकों की कृतियों के लिये प्रतिलिप्यधिकार संरक्षण को निर्बंधित करने का अधिकार देती हैजबकि धारा 42क प्रसारण संगठनों और प्रस्तुतकर्ताओं पर भी इसी प्रकार के निर्बंधन लगाती है। 
  • ये उपबंध दोहरे उद्देश्य पूरा करते हैं: विभेदपूर्ण व्यवहार के विरुद्ध घरेलू हितों की रक्षा करना तथा बेहतर प्रतिलिप्यधिकार संरक्षण व्यवस्था के लिये द्विपक्षीय वार्ता में लाभ प्रदान करना। 

संसदीय निरीक्षण: धारा 43 

  • धारा 43 के अनुसारअध्याय के अंतर्गत जारी सभी आदेशों को संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत किया जाना चाहियेजिससे उनकी संसदीय जांच और संभावित संशोधन किया जा सके। इससे अंतर्राष्ट्रीय प्रतिलिप्यधिकार नीति के मामलों में कार्यकारी कार्रवाई पर विधायी निगरानी सुनिश्चित होती है।  

निष्कर्ष 

अध्याय भारत के अंतर्राष्ट्रीय दायित्त्वों और राष्ट्रीय हितों के बीच संतुलन स्थापित करते हुए एक व्यापक विधिक ढाँचा स्थापित करता है। ये उपबंध पारस्परिकता संबंधी आवश्यकताओं और सरकारी विवेकाधिकार के माध्यम से लचीलेपन को बनाए रखते हुए सीमा पार प्रतिलिप्यधिकार संरक्षण को सुगम बनाते हैंजिससे वैश्विक रचनात्मक अर्थव्यवस्था में भारत की भागीदारी को बढ़ावा मिलता है और साथ ही घरेलू हितधारकों के अधिकारों की रक्षा भी होती है।