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सिविल कानून

बिना कब्जे या स्वामित्व की घोषणा के व्यादेश नहीं दिया जा सकता

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 04-Nov-2025

"जब वादी के पास कब्ज़ा नहीं है या उसने स्वामित्व की घोषणा की मांग नहीं की हैतो व्यादेश नहीं दिया जा सकता।" 

न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह

स्रोत:उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रनऔरन्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाहकी पीठ नेनिर्णय दिया कि जब वादी के पास संपत्ति का कब्जा नहीं है और स्वामित्व ही विवाद में हैतोस्वामित्व की घोषणा या कब्जे की वसूलीके बिना व्यादेश का आदेश नहीं दिया जा सकता। 

उच्चतम न्यायालय ने एस. संथाना लक्ष्मी एवं अन्य बनाम डी. राजम्मल (2025) के मामले में यह निर्णय दिया। 

एस. संथाना लक्ष्मी एवं अन्य बनाम डी. राजम्मल मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • यह मामला 74½ एकड़कृषि भूमि के संबंध में पारिवारिक विवाद से उत्पन्न हुआ , जो मूल रूप सेदोनों पक्षकरों के पितारंगास्वामी नायडू के स्वामित्व में थी। 
  • प्रत्यर्थी-वादीराजम्मल नेअपने भाईमुनुस्वामी के विरुद्धव्यादेशके लिये वाद दायर कियाजिसमेंउनके पिता द्वारा 30.09.1985 को निष्पादित वसीयतके आधार परआधे संपत्ति (0.87¼ एकड़) केकब्जे में हस्तक्षेपकरने या उसेअलग करनेसे रोकने की मांग की गई थी। 
  • राजम्मल ने दावा किया कि उसके पिता ने ज़मीन उसे और उसके भाई गोविंदराजन को बराबर-बराबर दी थी। यद्यपिप्रतिवादी ने दावा किया कि यह संपत्तिपैतृकथी और 1983 में उनके पिता के जीवनकाल में ही संपत्ति का बंटवाराहो गया था जिससे उन्हें अधिकार और कब्ज़ा मिल गया था। 
  • विचारण न्यायालय नेमाना कि वसीयत वैध थी और वादी के पक्ष में व्यादेश जारी किया 
  • प्रथमअपीलीय न्यायालय नेयह पाते हुए निर्णय को उलट दिया कि वसीयतकर्त्ता कोपैतृक संपत्ति को वसीयत करने का कोई अधिकार नहींहै । 
  • उच्चन्यायालय नेदूसरी अपील में विचारण न्यायालय के निर्णय को बहाल कर दिया। 
  • इससे व्यथित होकर प्रतिवादी के विधिक उत्तराधिकारियों नेउच्चतम न्यायालय कादरवाजा खटखटाया । 

न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं? 

उच्चतम न्यायालय ने वाद की प्रकृति की जांच की और पाया कि वादी ने स्वीकार किया था किसंपत्ति परप्रतिवादी का कब्जा था । 

न्यायालय ने कहा कि: 

  • वादी ने वसीयत पर विश्वास करते हुएस्वामित्व की घोषणायाकब्जे की वसूली कीमांग नहीं की , जबकि उसने स्वीकार किया था कि उसके पास भौतिक कब्जा नहीं था। 
  • जब स्वामित्व विवादित होऔरकब्जा वादी के पास न हो तोव्यादेश सरलतापूर्वकनहीं दिया जा सकता 
  • यह सिद्धांत कि "कब्जा स्वामित्व के बाद आता है " केवल तभी लागू होता है जब स्वामित्व निर्विवाद होयहांयहाँस्वामित्व स्वयं संदेह के घेरे में था । 
  • न्यायालय ने आगे कहा कि यद्यपि वसीयत साबित हो गई थीपरंतुपिता कासंपत्ति को वसीयत करने का अधिकार अनिश्चित बना हुआ थाक्योंकि संपत्तिपैतृक प्रकृति कीप्रतीत होती थी । 

इसलियेन्यायालय ने यह निर्णय दिया किकब्जे में हस्तक्षेप के विरुद्ध व्यादेशनहीं दिया जा सकती। यद्यपि, यथास्थिति बनाए रखने के लियेअलगाव के विरुद्ध व्यादेश बरकरार रखा गयाक्योंकिकिसी भी पक्षकार का स्वामित्व निश्चायक रूप से स्थापित नहीं हुआ था । 

व्यादेश का वाद क्या है? 

  • व्यादेश एक उपचार है जो किसी व्यक्ति के पक्ष में विद्यमान किसी दायित्त्व के उल्लंघन को रोकने के लिये न्यायालय से मांगा जाता है। 
  • व्यादेश की अवधि के अनुसार व्यादेश दो प्रकार की होते है: 
    • स्थायी व्यादेश: 
      • स्थायी व्यादेश एक न्यायालय आदेश है जोकिसी पक्षकार कोकुछ निश्चित आचरण करने से रोकता है या उन्हें विशिष्ट कार्य करने के लिये बाध्य करता है। 
      • इसे अंतिम और स्थायी उपचार माना जाता हैजो प्रारंभिक व्यादेश से भिन्न हैजो विधिक कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान अस्थायी आधार पर जारी किया जाता है। 
      • विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 (SRA) की धारा 38के अंतर्गत स्थायी या शाश्वत व्यादेश प्रदान किया जाता है । 
      • विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम की धारा 38 की उपधारा (1) में कहा गया है कि वादी को उसके पक्ष में विद्यमानदायित्त्व के उल्लंघन कोरोकने के लियेचाहे वह स्पष्ट रूप से हो या निहितार्थ सेशाश्वत व्यादेश प्रदान किया जा सकता है। 
    • अस्थायी व्यादेश: 
      • सिविल प्रक्रिया संहिता का आदेश 39 विशेष रूप से अस्थायी व्यादेश से संबंधित है। 
      • इसमें उन शर्तों का उल्लेख किया गया है जिनके अधीन न्यायालय किसी पक्षकार को कोई विशेष कार्य करने से रोकने या किसी पक्षकार को कोई विशिष्ट कार्य करने के लिये बाध्य करने के लिये व्यादेश दे सकता है। 
    • प्रमुख विचारणीय बिंदु निम्नलिखित हैं: 
      • मामले के गुण-दोष के आधार पर सफलता की संभावना। 
      • आवेदक को अपूरणीय क्षति होने की संभावना। 
      • पक्षकरों के बीच सुविधा का संतुलन।