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आपराधिक कानून
वयस्क ईसाई पुत्री को भरणपोषण
« »07-Nov-2025
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वर्गीस कुरुविला उर्फ़ सनी कुरुविला बनाम एनी वर्गीस और अन्य “एक वयस्क अविवाहित ईसाई पुत्री दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144) के अधीन अपने पिता से भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती है, जब तक कि वह शारीरिक या मानसिक असमर्थता के कारण स्वयं का भरणपोषण करने में असमर्थ न हो।” डॉ. न्यायमूर्ति कौसर एडप्पागथ |
स्रोत: केरल उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, डॉ. न्यायमूर्ति कौसर एडप्पागथ ने निर्णय दिया कि एक वयस्क ईसाई पुत्री दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144) के अधीन भरणपोषण का दावा नहीं कर सकती है, जब तक कि वह शारीरिक या मानसिक असामन्यता के कारण स्वयं को बनाए रखने में असमर्थ न हो, जबकि पत्नी के लिये भरणपोषण और उसके शैक्षिक व्यय के दावे को बरकरार रखा।
- केरल उच्च न्यायालय ने वर्गीस कुरुविला उर्फ़ सनी कुरुविला बनाम एनी वर्गीस एवं अन्य (2025) के मामले में यह निर्णय दिया।
वर्गीस कुरुविला उर्फ़ सनी कुरुविला बनाम सनी वर्गीस और अन्य (2025) की पृष्ठभूमि क्या थी ?
- पुनरीक्षण याचिकाकर्त्ता, वर्गीस कुरुविला उर्फ सनी कुरुविला, उम्र 65 वर्ष, प्रथम प्रत्यर्थी, एनी वर्गीस, उम्र 50 वर्ष, के पति और द्वितीय प्रत्यर्थी, संजना सारा वर्गीस, उम्र 27 वर्ष, के पिता हैं। सभी पक्षकार ईसाई हैं और रॉयल कोरोनेट, करकमुरी क्रॉस रोड, एर्नाकुलम साउथ, कोच्चि में रहते हैं।
- प्रत्यर्थियों (पत्नी और पुत्री) ने 2017 के M.C. No. 306 में कुटुंब न्यायालय, एर्नाकुलम के समक्ष याचिकाकर्त्ता के विरुद्ध भरणपोषण की कार्यवाही शुरू की। प्रथम प्रत्यर्थी ने 30,000 रुपए की दर से मासिक भरणपोषण का दावा किया, जबकि द्वितीय प्रत्यर्थी ने 15,000 रुपए प्रति माह की मांग की।
- सुनवाई के बाद, कुटुंब न्यायालय ने दिनांक 09.03.2021 के आदेश के अधीन प्रथम प्रत्यर्थी (पत्नी) को 20,000/- रुपए और द्वितीय प्रत्यर्थी (पुत्री) को 10,000/- रुपए मासिक भरणपोषण प्रदान किया। इसके अतिरिक्त, कुटुंब न्यायालय ने प्रथम प्रत्यर्थी को जनवरी 2017 से अप्रैल 2017 तक की अवधि के दौरान द्वितीय प्रत्यर्थी के शैक्षिक व्यय के लिये 30,000/- रुपए प्रदान करने का आदेश दिया।
- कुटुंब न्यायालय के आदेश से व्यथित होकर, याचिकाकर्त्ता ने मुख्य रूप से तीन आधारों पर, केरल उच्च न्यायालय, एर्नाकुलम के समक्ष वर्तमान पुनरीक्षण याचिका ((R.P.(F.C.) No. 157/2021) दायर की:
- (i) पुत्री के दावे की स्वीकार्यता: याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि चूँकि द्वितीय प्रत्यर्थी याचिका दायर करने की तिथि पर वयस्क थी, इसलिये वह दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144) के अधीन भरणपोषण का दावा करने की हकदार नहीं थी।
- (ii) पत्नी द्वारा परित्याग: याचिकाकर्त्ता ने प्रस्तुत किया कि प्रथम प्रत्यर्थी बिना पर्याप्त कारण के पृथक् रह रहा है, उसने उसे छोड़ दिया है, और इसलिये वह दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125(4) (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144(4)) के अधीन भरणपोषण के लिये हकदार नहीं है।
- (iii) पत्नी के स्वतंत्र साधन: याचिकाकर्त्ता ने दावा किया कि प्रथम प्रत्यर्थी कार्यरत थी और उसके पास अपना भरणपोषण करने के लिये पर्याप्त साधन थे, जिससे वह भरणपोषण का दावा करने से वंचित हो गई।
- साक्ष्यों से पता चला कि प्रथम प्रत्यर्थी 2017 से याचिकाकर्त्ता से दूर मुंबई में रह रही थी। उसने बताया कि उसका छोटा पुत्र, जो बीमार था, मुंबई में पढ़ाई कर रहा था और वह उसकी पढ़ाई और इलाज के लिये वहाँ रह रही थी।
- याचिकाकर्त्ता ने अपने शपथपत्र में स्वीकार किया कि वह ए.जी.एल. इंटरनेशनल रिक्रूटिंग एजेंसी का स्वामी है और रॉयल कोरोनेट में उसके दो फ्लैट हैं, जिनकी कुल कीमत 90,00,000 रुपए है। उसके बैंक खाते के विवरण से पता चला कि वह औसतन 60,000 रुपए मासिक निकालता है।
- प्रथम प्रत्यर्थी ने साक्ष्य में स्वीकार किया कि वह कभी-कभी अंशकालिक काम करती थी। अभिलेखों में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं था जिससे यह सिद्ध होता हो कि उसके पास स्थायी नौकरी थी और उसकी आय स्थिर थी।
- साक्ष्यों से पता चला कि द्वितीय प्रत्यर्थी एक प्रैक्टिसिंग अधिवक्ता थी। ऐसा कोई मामला नहीं बना कि उसे कोई शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति हुई हो जिससे वह अपना भरणपोषण करने में असमर्थ हो।
न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144) एक वयस्क अविवाहित पुत्री को भरण-पोषण तभी दे सकती है जब वह शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के कारण अपना भरणपोषण करने में असमर्थ हो। चूँकि द्वितीय प्रत्यर्थी एक अधिवक्ता थी और उसे ऐसी कोई असमर्थता नहीं थी, इसलिये वह भरणपोषण पाने की हकदार नहीं थी।
- न्यायालय ने कहा कि हिंदू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम और मुस्लिम पर्सनल लॉ के विपरीत, ईसाइयों पर लागू होने वाला कोई ऐसा पर्सनल लॉ नहीं है जो अविवाहित वयस्क पुत्री को अपने पिता से भरणपोषण का दावा करने का अधिकार देता हो। मैथ्यू वर्गीस बनाम रोसम्मा वर्गीस मामले में पूर्ण पीठ के निर्णय में केवल ईसाई पिताओं को ही अवयस्क बालकों का भरणपोषण करने का दायित्त्व दिया गया है।
- न्यायालय ने कहा कि एक माता के माता-पिता होने के दायित्त्व को सामान्यत: उसके वैवाहिक दायित्त्व से कहीं अधिक व्यापक माना जाता है। जब एक पत्नी अपने बीमार पुत्र के बेहतर इलाज और शिक्षा के लिये अपने पति से पृथक् रहती है, तो यह नहीं कहा जा सकता कि वह दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125(4) के अधीन भरणपोषण के अधिकार से वंचित करने के पर्याप्त कारण के बिना पृथक् रह रही है।
- न्यायालय ने कहा कि "स्वयं का भरणपोषण करने में असमर्थ" होने का अर्थ यह नहीं है कि पत्नी निर्धन हो। भले ही पत्नी कमाने में सक्षम हो या कुछ कमा रही हो, यह उसे भरणपोषण का दावा करने से वंचित नहीं करता। कसौटी यह है कि क्या वह उस स्थिति में अपना भरण-पोषण कर सकती है जिसमें उसके पति ने उसका भरण-पोषण किया था।
- न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय के पूर्व निर्णयों पर विश्वास करते हुए कहा कि केवल इसलिये कि पत्नी स्थायी नियोजन और स्थिर आय के बिना अंशकालिक काम कर रही थी, उसके भरणपोषण के दावे को खारिज करने का आधार नहीं हो सकता।
- न्यायालय ने कहा कि स्वयं का भरणपोषण करने में असमर्थ पत्नी द्वारा किये गए भरणपोषण के दावे में आश्रित बालक की शिक्षा पर किये गए खर्च भी सम्मिलित हैं, भले ही बालक वयस्क हो। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 ऐसी स्थिति को नहीं रोकती है।
- भर्ती एजेंसी के स्वामी, 90,00,000 रुपए मूल्य के फ्लैटों के स्वामी तथा 60,000 रुपए की औसत मासिक निकासी के साथ याचिकाकर्त्ता की वित्तीय क्षमता को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने कहा कि पत्नी को 20,000 रुपए मासिक भरणपोषण तथा शिक्षा व्यय के लिये 30,000 रुपए देना बहुत ही उचित है तथा इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
वयस्क ईसाई पुत्री के भरणपोषण के विधिक उपबंध क्या हैं?
- सांविधिक प्रावधान: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144(1)(ग) में उपबंध है कि किसी व्यक्ति को अपनी धर्मज या अधर्मज संतान (विवाहित पुत्री के सिवाय) जो वयस्क हो गई है, का भरण-पोषण तभी करना चाहिये, जब ऐसी संतान किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के कारण स्वयं का भरणपोषण करने में असमर्थ हो।
- सशर्त अधिकार: यह उपबंध वयस्क संतान के लिये भरणपोषण का दावा करने का एक सशर्त अधिकार प्रदान करता है। यह शर्त शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति की उपस्थिति है जो स्वयं भरण-पोषण करने से रोकती है।
- वयस्क पुत्रियों के लिये सामान्य नियम: एक अविवाहित ईसाई पुत्री जो वयस्क हो गई है, वह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144 के अधीन अपने पिता से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार नहीं है, जब तक कि वह शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के कारण स्वयं का भरणपोषण करने में असमर्थ न हो।
- ईसाई पर्सनल लॉ का अभाव: हिंदू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (धारा 20(3)) और मुस्लिम पर्सनल लॉ के विपरीत, जो पिता को वयस्क होने के बाद भी अविवाहित पुत्रियों का भरणपोषण करने के लिये आबद्ध करता है, ईसाइयों के लिये वयस्क पुत्रियों के भरणपोषण के लिये कोई समान पर्सनल लॉ लागू नहीं है।
- केरल उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ का पूर्व निर्णय: मैथ्यू वर्गीस बनाम रोसम्मा वर्गीस [2003 (3) के.एल.टी. 6 (एफ.बी.)] घोषित करती है कि एक ईसाई पिता केवल अपनी अवयस्क संतान का भरणपोषण करने के लिये आबद्ध है, वयस्क पुत्रियों का नहीं।
- सबूत का भार: वयस्क ईसाई पुत्री को यह साबित करना होगा कि वह शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति से पीड़ित है, जिसके कारण वह अपना भरणपोषण करने में असमर्थ है। केवल अविवाहित होना या बेरोज़गारी होना पर्याप्त नहीं है।
- सक्षम वयस्क पुत्री - कोई अधिकार नहीं: जहाँ एक वयस्क ईसाई पुत्री किसी भी शारीरिक या मानसिक असमर्थता के बिना कार्यरत है या किसी वृत्ति (जैसे अधिवक्ता) कर रही है, वह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144 के अधीन भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती है।
- पत्नी के भरण-पोषण से भेद: धारा 144(1)(क) शारीरिक या मानसिक असामान्यता के सबूत की आवश्यकता के बिना स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ पत्नी को भरण-पोषण प्रदान करती है, जो वयस्क संतान के दावों के लिये कठोर शर्तों को प्रदर्शित करती है।
- विधायी आशय: इस उपबंध का उद्देश्य केवल उन वयस्क संतान की रक्षा करना है, जो शारीरिक या मानसिक असमर्थता के कारण माता-पिता पर निर्भर रहते हैं, न कि उन सक्षम वयस्क संतान की जो स्वयं का भरणपोषण करने में सक्षम हैं।
- न्यायिक विस्तार की अनुमति नहीं: न्यायालय धारा 144(1)(ग) के दायरे का विस्तार कर शारीरिक या मानसिक असामान्यता से रहित वयस्क अविवाहित पुत्रियों को भी इसमें सम्मिलित नहीं कर सकते, क्योंकि यह न्यायिक विधायन के समान होगा।