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पारिवारिक कानून
विशेष विवाह अधिनियम, 1954
«15-Dec-2025
परिचय
भारत जैसे विविधतापूर्ण राष्ट्र में, जहाँ धार्मिक और जातिगत पहचान ने पारंपरिक रूप से वैवाहिक संबंधों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, विवाहों को नियंत्रित करने वाले एक पंथनिरपेक्ष ढाँचे की आवश्यकता अनिवार्य हो गई।
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954 एक प्रगतिशील विधान के रूप में सामने आया, जो विभिन्न धर्मों और जातियों के व्यक्तियों को अपनी धार्मिक पहचान को त्यागे बिना अपने विवाह को अनुष्ठित करने की अनुमति देता है।
विशेष विवाह अधिनियम, 1954
- विशेष विवाह अधिनियम (SMA), 1954 एक भारतीय विधि है जो विभिन्न धर्मों या जातियों के लोगों के विवाह के लिये एक विधिक ढाँचा प्रदान करता है।
- यह ऐसे सिविल विवाहों को नियंत्रित करता है जहाँ धर्म के बजाय राज्य विवाह को मान्यता देता है।
- भारत में सिविल और धार्मिक दोनों प्रकार के विवाहों को मान्यता प्राप्त है, और यह व्यवस्था ब्रिटेन के 1949 के विवाह अधिनियम के विधियों के समान है।
- यह विधान विवाह के प्रति एक पंथनिरपेक्ष दृष्टिकोण को दर्शाता है, जो जोड़ों को अपनी धार्मिक संबद्धताओं की परवाह किये बिना विवाह करने की अनुमति देता है, साथ ही उनकी व्यक्तिगत धार्मिक पहचान को भी बनाए रखता है।
अधिनियम के बुनियादी प्रावधान
- प्रयोज्यता:
- यह अधिनियम भारत भर में हिंदुओं, मुसलमानों, सिखों, ईसाइयों, जैनियों और बौद्धों सहित सभी धर्मों के लोगों पर लागू होता है।
- यह अधिनियम विवाह संपन्न कराने के लिये एक समान ढाँचा प्रदान करता है, चाहे इसमें सम्मिलित पक्षकारों की धार्मिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो।
- यह सुनिश्चित करता है कि दंपतियों के पास धार्मिक समारोहों के बजाय राज्य अधिकारियों द्वारा आयोजित सिविल विवाह समारोह का विकल्प हो।
विवाह की मान्यता:
- यह अधिनियम विवाहों के रजिस्ट्रीकरण का प्रावधान करता है, जो विवाह को विधिक मान्यता प्रदान करता है और दंपत्ति को कई विधिक लाभ और सुरक्षा प्रदान करता है।
- इन लाभों में विरासत के अधिकार, उत्तराधिकार के अधिकार और सामाजिक सुरक्षा लाभ सम्मिलित हैं।
- यह बहुविवाह को प्रतिबंधित करता है और यदि विवाह के समय दोनों पक्षकारों में से किसी का भी पति/पत्नी जीवित हो तो विवाह को शून्य घोषित करता है।
- यदि विवाह के दोनों पक्षकारों में से कोई भी चित्त विकृति के कारण विवाह के लिये वैध सम्मति देने में असमर्थ है, तो विवाह शून्य हो जाता है।
- यह अधिनियम सुनिश्चित करता है कि इसके प्रावधानों के अधीन अनुष्ठित विवाहों को व्यक्तिगत विधियों के अधीन संपन्न विवाहों के समान विधिक मान्यता प्राप्त हो।
लिखित सूचना की आवश्यकता:
- अधिनियम की धारा 5 में यह निर्दिष्ट है कि पक्षकारों को जिले के विवाह अधिकारी को लिखित सूचना देनी होगी।
- दोनों पक्षकारों में से कम से कम एक पक्षकार को ऐसी अधिसूचना की तारीख से ठीक पहले कम से कम 30 दिनों तक जिले में निवास करना आवश्यक है।
- अधिनियम की धारा 7 किसी भी व्यक्ति को नोटिस के प्रकाशन की तारीख से 30 दिनों की समाप्ति से पहले विवाह पर आपत्ति जताने की अनुमति देती है।
- यद्यपि इस उपबंध का उद्देश्य कपटपूर्ण या अवैध विवाहों को रोकना था, किंतु यह विवाद और दुरुपयोग का स्रोत बन गया है।
आयु सीमा:
- विशेष विवाह अधिनियम के अधीन विवाह करने की न्यूनतम आयु पुरुषों के लिये 21 वर्ष और महिलाओं के लिये 18 वर्ष है।
- ये आयु संबंधी आवश्यकताएँ अनिवार्य हैं और अधिनियम के अधीन वैध विवाह के लिये इन्हें पूरा करना आवश्यक है।
व्यक्तिगत विधियों से भिन्नता
मुख्य अंतर:
- व्यक्तिगत विधियों के अनुसार, विवाह से पहले पति या पत्नी में से किसी एक को दूसरे के धर्म में परिवर्तित होना आवश्यक है।
- यद्यपि, विशेष विवाह अधिनियम यह पारंपरिक व्यक्तिगत विधि की आवश्यकताओं से एक महत्त्वपूर्ण विचलन को दर्शाता है और दंपतियों को अपने जीवन साथी चुनने में अधिक स्वायत्तता प्रदान करता है।
उत्तराधिकार अधिकारों पर प्रभाव:
- विशेष विवाह अधिनियम के अनुसार, एक बार विवाह हो जाने के पश्चात्, व्यक्ति को विरासत के अधिकार जैसे अधिकारों के मामले में परिवार से अलग माना जाता है।
- इसका अर्थ यह है कि विशेष विवाह अधिनियम के अधीन विवाह करने वाले दंपति अपने-अपने व्यक्तिगत विधियों के अधीन कुछ उत्तराधिकार अधिकारों को खो सकते हैं।
- इस परिणाम ने अधिनियम के अधीन विवाह करने पर विचार कर रहे कुछ दंपति के लिये एक बाधा उत्पन्न की है।
विशेष विवाह अधिनियम से संबंधित विवाद्यक
विवाह पर आक्षेप:
- विशेष विवाह अधिनियम की मुख्य विवाद्यक में से एक विवाह के विरुद्ध आक्षेप का प्रावधान है।
- इस प्रावधान का अक्सर सम्मति से विवाह करने वाले दंपति को परेशान करने और उनके विवाह में विलंब करने या उसे होने से रोकने के लिये प्रयोग किया जा सकता है।
- 30 दिन की नोटिस अवधि परिवार के सदस्यों या अन्य लोगों को दंपति के विवाह करने के निर्णय में हस्तक्षेप करने का अवसर प्रदान करती है।
निजता से संबंधित चिंताएँ:
- नोटिस प्रकाशित करने की अनिवार्यता को निजता का उल्लंघन माना जा सकता है।
- इससे दंपत्ति की निजी जानकारी और उनके विवाह की योजनाओं का प्रकटन हो सकता है, जिससे वे अवांछित जांच-पड़ताल और उत्पीड़न के शिकार हो सकते हैं।
सामाजिक कलंक:
- भारत के कई भागों में अंतरजातीय या अंतरधार्मिक विवाह अभी भी व्यापक रूप से स्वीकार्य नहीं हैं।
- विशेष विवाह अधिनियम के अधीन विवाह करने का विकल्प चुनने वाले दंपति को अपने परिवारों और समुदायों से सामाजिक कलंक और भेदभाव का सामना करना पड़ सकता है।
- यह सामाजिक दबाव उत्पीड़न, बहिष्कार और चरम मामलों में, अधिनियम के अधीन विवाह करने के अपने अधिकार का प्रयोग करने वाले दंपति के विरुद्ध हिंसा का कारण बन सकता है।