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आपराधिक कानून

कर्नाटक राज्य बनाम शिवन्ना उर्फ़ तारकारी शिवन्ना (2014)

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 12-Nov-2025

परिचय 

कर्नाटक राज्य बनाम शिवन्ना उर्फ़ तारकारी शिवन्ना (2014) मामले में उच्चतम न्यायालय नेबलात्संग के अन्वेषण में प्रक्रियात्मक खामियों और विलंब को संबोधित करते हुए एक ऐतिहासिक निर्णय दिया 

  • यह निर्णय न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा और न्यायमूर्ति वी. गोपाल गौड़ा की दो न्यायाधीशों वाली पीठने दिया 
  • इस मामले नेबलात्संग और बाल लैंगिक शोषण के मामलों मेंत्वरित प्रक्रिया की तत्काल आवश्यकता को उजागर किया, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि न्याय में विलंब न हो या उसे नकारा न जाए। 

तथ्य 

  • प्रत्यर्थी, शिवन्ना उर्फ ​​तारकारी शिवन्ना, कर्नाटक के मांड्या जिले का निवासी, अल्बुर गाँव में काम की तलाश कर रहा था। 
  • पीड़िताछह वर्ष की बच्चीथी, जो अपने परिवार के साथ उसी गाँव में रहती थी। 
  • 17 मार्च 2003 कोजब बच्ची अपनी बहन के साथ खेल रही थी तो अभियुक्त उसे बिस्कुट देने का वादा करके बहला-फुसलाकर ले गया। 
  • इसके बाद उसनेपीड़िता के साथलैंगिक उत्पीड़न और बलात्कार किया और उसे उसके दादा के घर के पास छोड़ दिया। 
  • पीड़ित कोनोनाविनाकेरे के सरकारी अस्पतालले जाया गया, तथा बाद में आगे की चिकित्सा के लिये टिपटूर सरकारी अस्पताल रेफर कर दिया गया। 
  • पुलिस ने मामला दर्ज किया और अभियुक्त को 18 मार्च 2003 को गिरफ्तार कर लिया गया । 
  • विचारण न्यायालय नेअभियुक्त कोभारतीय दण्ड संहिता की धारा 376(2)(च) के अधीन दोषी करार देते हुएआजीवन कारावास कीदण्ड दिया । 
  • अपील पर, कर्नाटक उच्च न्यायालय नेदोषसिद्धि को बरकरार रखा, किंतुदण्ड को घटाकर 10 वर्ष काकठोर कारावास करदिया और 50,000 रुपए का जुर्माना अधिरोपित किया 
  • दण्ड में कटौती से व्यथित होकरकर्नाटक राज्य नेभारत के उच्चतम न्यायालयमेंएकविशेष अनुमति याचिकादायर की । 

सम्मिलित विवाद्यक 

  • क्या दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 केअधीन पीड़िता का कथन अभिलिखित करने में अपनाई गई प्रक्रियाउचित और विधि के अनुरूप थी? 
  • क्या बलात्संग के मामलों में पीड़िता की गरिमा और त्वरित विचारण सुनिश्चित करने के लियेविशेष प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायोंकी आवश्यकता है ? 

न्यायालय की टिप्पणियाँ 

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि: 

  • बलात्संग एक जघन्य अपराध हैजो पीड़ित की गरिमा और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को नष्ट कर देता है। 
  • बलात्संग और सामूहिक बलात्संग के मामलों में केवल फास्ट-ट्रैक न्यायालयों की नहीं, अपितुत्वरित प्रक्रियाओं की भी कठोर आवश्यकताहै । 
  • पीड़िता के कथन को बार-बार अभिलिखित करने सेआघातऔर विलंब होता है और इसे कम से कम किया जाना चाहिये 
  • न्यायालय ने अन्वेषण औरधारा 164 दण्ड प्रक्रिया संहिताके अधीनपीड़िता के कथन अभिलिखित करने में गंभीर खामियों का उल्लेख किया। 
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 का आह्वान करते हुए न्यायालय नेदेश भर में एक समान प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लियेअंतरिम निर्देश (परमादेश) जारी किये 

न्यायालय के निदेश: 

न्यायालय ने भारत के सभीपुलिस थानोंऔरअन्वेषण अधिकारियोंको निम्नलिखित बाध्यकारी निदेश जारी किये : 

  • मजिस्ट्रेट के समक्ष तत्काल पेशी: 
    बलात्संग की सूचना मिलने पर, अन्वेषण अधिकारी पीड़िता कोधारा 164 दण्ड प्रक्रिया संहिताके अधीन उसका कथन अभिलिखित करने के लियेतुरंत महानगर मजिस्ट्रेट या अधिमानतः महिला न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास ले जाएगा। 
  • गोपनीयता: 
    कथन की एक प्रति अन्वेषण अधिकारी को दी जाएगी, तथा यह विशिष्ट निदेश दिया जाएगा किआरोप पत्र दाखिल होने तकइसकी विषय-वस्तु को प्रकट न किया जाए। 
  • समय को अभिलिखित करना: 
    अधिकारी को उससटीक तारीख और समय कोअभिलिखित करना होगा जब उसे अपराध के बारे में पता चला और जब पीड़ित को मजिस्ट्रेट के सामने ले जाया गया। 
  • विलंब का स्पष्टीकरण:पीड़ित को मजिस्ट्रेट के समक्ष ले जाने में 24 घंटे 
    से अधिक के विलंब के बारेमें लिखित रूप में स्पष्टीकरण दिया जानाचाहिये तथा केस डायरी में दर्ज किया जाना चाहिये, जिसकी एक प्रति मजिस्ट्रेट को दी जानी चाहिये 
  • चिकित्सीय परीक्षा: दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 164के अनुसार 
    पीड़ित कोतुरंत चिकित्सीय परीक्षा के लिये भेजा जानाचाहिये।  चिकित्सीय रिपोर्ट तुरंत मजिस्ट्रेट को सौंपी जानी चाहिये 
     
  • निर्देशों का प्रसार: इस आदेश की एक प्रतिसभी पुलिस महानिदेशकों (DGP) और राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशोंके पुलिस आयुक्तोंको कठोर अनुपालन के लिये प्रसारित करने का निदेश दिया गया। 

निष्कर्ष 

न्यायालय ने बलात्संग और बाल लैंगिक शोषण मामलों के लियेत्वरित प्रक्रिया तंत्रबनाने का निदेश दिया, जिससे पीड़िता का कथन तत्काल अभिलिखित किया जा सके, समय पर चिकित्सीय परीक्षा हो सके और अन्वेषण की गोपनीयता बनी रहे। 

यह निर्णयलैंगिक अपराधियों के विरुद्धलैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण (POCSO) और भारतीय दण्ड संहिता (IPC) प्रावधानोंके प्रभावी प्रवर्तन को सुनिश्चित करते हुए पीड़ितों के अधिकारों और गरिमा की रक्षा करने में एकआधारभूत पूर्व निर्णय के रूप में कार्य करता है।