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आपराधिक कानून
आपराधिक मामलों में शिनाख्त परेड परीक्षण की विश्वसनीयता
« »18-Nov-2025
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"जहाँ साक्षियों को शिनाख्त परीक्षण परेड आयोजित करने से पहले अभियुक्तों को देखने का अवसर मिला है, ऐसी कार्यवाही का साक्ष्य मूल्य काफी कम हो जाता है।" न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने राज कुमार उर्फ भीमा बनाम राजधानी क्षेत्र दिल्ली (2025) मामले में डकैती के दौरान एक बुजुर्ग व्यक्ति की हत्या के अभियुक्त व्यक्ति को यह कहते हुए दोषमुक्त कर दिया कि शिनाख्त परीक्षण परेड अवैध थी और प्रत्यक्षदर्शी की पहचान अविश्वसनीय थी।
राज कुमार उर्फ भीमा बनाम राजधानी क्षेत्र दिल्ली (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- अपीलकर्त्ता पर लूट के दौरान एक बुजुर्ग व्यक्ति की हत्या का आरोप था।
- अभियोजन पक्ष का मामला मुख्यतः एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी पर आधारित था, जिसने दावा किया था कि उसने घटना देखी थी।
- अभियुक्त की पहचान के लिये शिनाख्त परेड परीक्षण (TIP) आयोजित की गई।
- प्रत्यक्षदर्शी ने घटना के लगभग आठ वर्ष बाद वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए न्यायालय में अभियुक्त की पहचान की।
- उच्चतम न्यायालय के निर्णय के समय अभियुक्त लगभग 15 वर्षों से जेल में था।
- अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि अभियुक्त द्वारा भाग लेने से इंकार करने के कारण शिनाख्त परेड परीक्षण (TIP) आयोजित करने के प्रयास असफल हो गए ।
- कथित तौर पर, शिनाख्त परेड परीक्षण (TIP) आयोजित करने से पहले अभियुक्त की तस्वीरें प्रत्यक्षदर्शी को दिखाई गई थीं।
- समय के साथ प्रत्यक्षदर्शी के परिसाक्ष्य में काफी सुधार हुआ तथा उसमें भौतिक विरोधाभास भी सामने आए।
न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं?
- न्यायालय ने माना कि लगभग साढ़े आठ वर्ष बाद न्यायालय में अभियुक्त की पहचान विश्वसनीय होने की अत्यधिक संभावना नहीं है, विशेषत: जब प्रत्यक्षदर्शी (श्रीमती इंद्र प्रभा गुलाटी, PW-18) ने स्वीकार किया कि उसकी दूर की दृष्टि कमजोर थी, घटना के समय वह 73 वर्ष की थी, और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से साक्ष्य के दौरान उसने चश्मा नहीं पहना हुआ था।
- न्यायालय ने शिनाख्त परीक्षण परेड को अवैध घोषित कर दिया, यह देखते हुए कि अभियुक्त की तस्वीरें प्रत्यक्षदर्शी को शिनाख्त परेड परीक्षण (TIP) से पहले ही दिखा दी गई थीं, तथा इस बात पर बल दिया कि "जहाँ साक्षियों को शिनाख्त परेड परीक्षण (TIP) के आयोजन से पहले अभियुक्त को देखने का अवसर मिला है, वहाँ ऐसी कार्यवाहियों का साक्ष्य मूल्य काफी कम हो जाता है।"
- पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष का यह कर्त्तव्य है कि वह संदेह से परे यह साबित करे कि अभियुक्त को गिरफ्तारी से पहले बापर्दा रखा गया था, जिससे साक्षी द्वारा आरोपी का चेहरा पहले से देखने की किसी भी संभावना को खारिज किया जा सके, चाहे वह शारीरिक रूप से हो या तस्वीरों के माध्यम से।
- न्यायालय ने कहा: "जब न्यायालय में अभियुक्त-अपीलकर्त्ता की पहचान खारिज कर दी जाती है, तो अभियुक्त को अपराध से जोड़ने के लिये अभिलेख पर कोई ठोस सबूत नहीं बचता।"
- यह देखते हुए कि परिस्थितियों की पूरी श्रृंखला आपस में जुड़ी हुई नहीं है, उच्चतम न्यायालय ने अपील को स्वीकार कर लिया तथा अपीलकर्त्ता-अभियुक्त को रिहा करने का आदेश दिया, जो लगभग 15 वर्षों से जेल में था।
शिनाख्त परेड परीक्षण (TIP) क्या है ?
बारे में:
- अभियुक्त की पहचान स्थापित करने के तरीकों में से एक शिनाख्त परेड परीक्षण (TIP) है जो भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 9 के अधीन प्राप्त की जाती है।
- यह धारा अब भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA) की धारा 7 के अंतर्गत आती है।
- यह धारा सुसंगत तथ्यों के स्पष्टीकरण या पुर:स्थापन के लिये आवश्यक तथ्यों से संबंधित है।
उद्देश्य:
- परेड का उद्देश्य साक्षी की सत्यता का परीक्षण करना है, इस प्रश्न पर कि क्या वह कई लोगों में से किसी अज्ञात व्यक्ति को पहचानने में सक्षम है, जिसे उसने अपराध के संदर्भ में देखा था।
- इसके दो प्रमुख उद्देश्य हैं:
- अन्वेषण अधिकारियों को यह संतुष्टि प्रदान करना कि अपराध में एक ऐसा व्यक्ति सम्मिलित था जिसे साक्षी पहले से नहीं जानते थे।
- संबंधित साक्षी द्वारा न्यायालय के समक्ष दिये गए परिसाक्ष्य की पुष्टि के लिये साक्ष्य प्रस्तुत करना।
आवश्यक तत्त्व:
- जहाँ तक संभव हो, जेल में न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा शिनाख्त परेड आयोजित की जाएगी।
- शिनाख्त परेड के दौरान पहचान करने वाले साक्षी द्वारा दिये गए कथनों को कार्यवाही में अभिलिखित किया जाना चाहिये। यदि कोई साक्षी भूल भी करता है, तो उसे अभिलिखित किया जाना चाहिये।
- शिनाख्त परेड परीक्षण (TIP) विधि में कोई ठोस साक्ष्य नहीं है और इसका उपयोग केवल न्यायालय में दिये गए संबंधित साक्षी के परिसाक्ष्य की संपुष्टि या खंडन के लिये किया जा सकता है।
शिनाख्त परेड परीक्षण (TIP) का तरीका:
- जहाँ तक संभव हो, जेल में न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा पहचान परेड आयोजित की जाएगी ।
- परेड की व्यवस्था करते समय पुलिस अधिकारियों को स्वयं को पूरी तरह से मिट जाना चाहिये तथा वास्तविक पहचान की कार्यवाही मजिस्ट्रेट पर छोड़ देनी चाहिये।
- जब कोई साक्षी कहता है कि वह अन्वेषण के अधीन मामले से जुड़े अभियुक्तों या अन्य लोगों की पहचान कर सकता है, तो अन्वेषण अधिकारी निम्नलिखित बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए केस डायरी में उनका विवरण विस्तार से अभिलिखित करेगा:
- उनका विवरण।
- अपराध के समय प्रकाश की सीमा (दिन का प्रकाश, चाँदनी, मशालों की चमक, जलता हुआ मिट्टी का तेल, बिजली या गैस की बत्तियाँ)।
- अपराध के समय अभियुक्त को देखने के अवसरों का विवरण तथा अभियुक्त के चेहरे या आचरण में कोई ऐसी बात जिससे वह प्रभावित हुआ हो (पहचानकर्त्ता)।
- वह दूरी जहाँ से उसने अभियुक्त को देखा।
- वह समय अवधि जिसके दौरान उसने अभियुक्त को देखा।
- जब किसी व्यक्ति या व्यक्तियों की शिनाख्त के लिये किसी साक्षी द्वारा परेड आयोजित की जानी हो तो ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों को साक्षियों की नजर से सावधानीपूर्वक दूर रखा जाएगा और उन्हें समान वर्ग के अन्य लोगों की पर्याप्त संख्या के साथ मिलाया जाएगा।
- परेड का संचालन करने वाले मजिस्ट्रेट या अन्य व्यक्तियों को स्वयं संतुष्ट होना चाहिये कि कोई भी पुलिस अधिकारी वास्तविक शिनाख्त कार्यवाही में भाग नहीं ले रहा है।
- शिनाख्त परेड के दौरान पहचान करने वाले साक्षी द्वारा किये गए कथनों को कार्यवाही में अभिलिखित किया जाना चाहिये। यदि कोई साक्षी भूल भी करता है, तो उसे अभिलिखित किया जाना चाहिये।
- शिनाख्त परेड पूरी होने और कार्यवाही की रूपरेखा तैयार होने के बाद, एक प्रमाण पत्र जारी किया जाना चाहिये जिस पर परेड का संचालन करने वाले मजिस्ट्रेट के हस्ताक्षर हों।
शिनाख्त परेड परीक्षण (TIP) का साक्ष्य मूल्य:
- शिनाख्त परेड परीक्षण (TIP) विधि में कोई ठोस साक्ष्य नहीं है और इसका उपयोग केवल न्यायालय में दिये गए संबंधित साक्षी के साक्ष्य की संपुष्टि या खंडन के लिये किया जा सकता है।
निर्णय विधि:
- रामकिशन बनाम बॉम्बे राज्य (1955) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अन्वेषण के दौरान, पुलिस को शिनाख्त परेड करवानी आवश्यक है। इन परेडों का उद्देश्य साक्षियों को अपराध के केंद्र में स्थित संपत्तियों या अपराध में सम्मिलित व्यक्तियों की पहचान करने में सक्षम बनाना है।