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बौद्धिक संपदा अधिकार
भारतीय प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम 1957
«14-Nov-2025
परिचय
प्रतिलिप्यधिकार एक विधिक अधिकार है जो भारत में साहित्यिक, कलात्मक, संगीतात्मक, चलचित्र फिल्म और कंप्यूटर प्रोग्राम आदि की मौलिक कृतियों की रक्षा करता है।
यह विचारों की नहीं अपितु उनकी अभिव्यक्ति की सुरक्षा करता है। प्रतिलिप्यधिकार के स्वामी के पास उस कृति को अनुकूलित करने, पुनरुत्पादित करने, प्रकाशित करने, अनुवाद करने और जनता तक पहुँचाने का अनन्य अधिकार होता है।
- 1958 में पहली बार पारित होने के पश्चात् से इस अधिनियम में कई संशोधन हुए हैं। सबसे हालिया संशोधन 2012 में किया गया था।
प्रमुख धाराएँ
- धारा 2: कार्य की विभिन्न परिभाषाओं से संबंधित है जिन्हें प्रतिलिप्यधिकार की परिभाषा के अंतर्गत सम्मिलित किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिये, धारा 2(ण) साहित्यिक कृतियों से संबंधित है, धारा 2(ज) में प्रतिलिप्यधिकार संरक्षण की परिभाषा के अंतर्गत सभी नाट्यकृति सम्मिलित हैं।
- धारा 13: साहित्यिक कृतियों, संगीतात्मक कृतियों, नाट्यकृतियों, चलचित्र फिल्म और ध्वन्यंकन आदि को प्रतिलिप्यधिकार संरक्षण प्रदान करता है।
- धारा 14: प्रतिलिप्यधिकार स्वामी को विशिष्ट अधिकारों का एक समूह प्रदान करता है, जैसे कि कार्य को अनुकूलित करना, पुनरुत्पादित करना, प्रकाशित करना, अनुवाद करना और जनता तक संप्रेषित करना।
- कोई भी व्यक्ति इन अधिकारों का प्रयोग तब तक नहीं कर सकता जब तक कि उसके पास प्रतिलिप्यधिकार स्वामी की अनुमति न हो।
प्रतिलिप्यधिकार (संशोधन) नियम, 2021
- प्रतिलिप्यधिकार विधियों को अन्य सुसंगत विधानों के साथ संरेखित करने के लिये इसे लागू किया गया।
- रॉयल्टी के संग्रहण और वितरण में जवाबदेही और पारदर्शिता बढ़ाने का लक्ष्य।
- प्रतिलिप्यधिकार बोर्ड को अपीलीय बोर्ड में विलय कर दिया गया है।
- सॉफ्टवेयर रजिस्ट्रीकरण के लिये अनुपालन आवश्यकताओं को सरल बना दिया गया है।
- आवेदक स्रोत कोड के प्रथम 10 और अंतिम 10 पृष्ठ, या यदि कोड 20 पृष्ठों से कम है तो संपूर्ण कोड, बिना किसी संशोधन के दाखिल कर सकते हैं ।
- केंद्र सरकार को प्रतिलिप्यधिकार सोसायटी के रूप में रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन पर 180 दिनों के भीतर जवाब देना होगा।