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वाणिज्यिक विधि
एम.एस.एम.ई. ऋणों पर पुरोबंध भार का निषेध
«06-Dec-2025
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माँ तारिणी पोल्ट्रीज़ प्राइवेट लिमिटेड बनाम इंडियन बैंक और अन्य "जब विवेकाधिकार, बलपूर्वक में परिवर्तित हो जाता है, तो वह बैंकिंग नहीं रह जाता और अधिग्रहण बन जाता है। फ्लोटिंग-रेट क्रेडिट सुविधाओं पर पूर्व-संदाय या पुरोबंध भार लगाना, जो कि RBI के बाध्यकारी निदेशों द्वारा निषिद्ध है, ऐसे ही अनुचित परिवर्तन का उदाहरण है।" डॉ. न्यायमूर्ति संजीब के. पाणिग्रही |
स्रोत: उड़ीसा उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
डॉ. न्यायमूर्ति संजीव के. पाणिग्रही की पीठ ने माँ तारिणी पोल्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड बनाम इंडियन बैंक, मुख्य शाखा, बरहामपुर एवं अन्य (2025) के मामले में निर्णय दिया कि अस्थिर ब्याज दरों वाले सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास ऋणों पर पुरोबंध भार लगाना अवैध, मनमाना और RBI के बाध्यकारी निदेशों के विपरीत है, और ऐसे भारों पर बल दिये बिना बंधक संपत्ति के दस्तावेज़ों को तुरंत जारी करने का निदेश दिया।
माँ तारिणी पोल्ट्रीज़ प्राइवेट लिमिटेड बनाम इंडियन बैंक एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- याचिकाकर्त्ता, माँ तारिणी पोल्ट्रीज़ प्राइवेट लिमिटेड, एक रजिस्ट्रीकृत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (MSME) थी जिसकी रजिस्ट्रीकरण संख्या UDYAM-OD-11-0003310 थी, जो पोल्ट्री क्षेत्र में कार्यरत थी।
- सितंबर 2020 में, याचिकाकर्त्ता ने कृषि आधारित औद्योगिक इकाई स्थापित करने के लिये रजिस्ट्रीकृत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (MSME) योजना के अधीन 1.80 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता की मांग करते हुए इंडियन बैंक, बरहामपुर से संपर्क किया।
- फरवरी 2022 में, इंडियन बैंक ने 1.80 करोड़ रुपए का ऋण स्वीकृत किया, जिसमें 1.45 करोड़ रुपए का सावधि ऋण और 35 लाख रुपए की नकद ऋण सुविधा सम्मिलित थी, जो याचिकाकर्त्ता की अचल संपत्तियों पर न्यायसंगत बंधक के निर्माण के अधीन थी।
- याचिकाकर्त्ता ने अभिकथित किया कि बैंक अधिकारियों ने उन्हें 1.53 लाख रुपए प्रति वर्ष मूल्य की SBI लाइफ पर्सनल इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदने के लिये विवश किया और इंकार करने पर बैंक ने चेक अनादरण कर दिया और 2023 के दौरान NEFT संव्यवहार में बाधा डाली।
- 22 मई 2023 को, याचिकाकर्त्ता के पोल्ट्री फार्म को काल बैसाखी तूफान के कारण भारी नुकसान हुआ। बीमा दावा प्रक्रिया के लिये बैंक से तत्काल संपर्क करने के बावजूद, एक वर्ष से अधिक समय तक कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया, जिससे गंभीर वित्तीय संकट उत्पन्न हो गया।
- निरतंर कठिनाइयों के कारण, याचिकाकर्त्ता ने ऋण अधिग्रहण के लिये HDFC बैंक से संपर्क किया। 22 मई 2024 और 26 मई 2024 की तारीखों वाले चेकों के माध्यम से इंडियन बैंक के सभी बकाया भुगतान के बाद, 26 मई 2024 को HDFC बैंक ने ऋण अधिग्रहण कर लिया।
- पूर्ण पुनर्भुगतान और अधिग्रहण के होते हुए भी, इंडियन बैंक ने बकाया राशि के 4% पर पुरोबंध भार की मांग की, जो सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (MSME) फ्लोटिंग-रेट ऋणों पर इस तरह के भारों को प्रतिबंधित करने वाले RBI के दिशानिर्देशों के विपरीत है।
- बैंक ने पूर्ण ऋण चुकौती के होते हुए भी याचिकाकर्त्ता के मूल स्वामित्व विलेख और संपत्ति के दस्तावेज़ वापस करने से इंकार कर दिया, जिसमें लगभग 2 करोड़ रुपए मूल्य की आवासीय संपत्ति और NH-16 के पास 5.9 एकड़ गराबारी भूमि शामिल थी।
- याचिकाकर्त्ता ने 4 जुलाई 2025 को परिवाद संख्या N2025260030026 के साथ RBI लोकपाल से संपर्क किया, किंतु शिकायत का समाधान नहीं हो सका क्योंकि तंत्र में व्यक्तिगत सुनवाई का प्रावधान नहीं था।
- बैंकिंग प्राधिकारियों के माध्यम से कोई प्रभावी उपाय उपलब्ध न होने पर याचिकाकर्त्ता ने उड़ीसा उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की।
न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि बैंकिंग संविदा लोक विनियामक मानदंडों के अंतर्गत संचालित होती हैं, और जब RBI सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (MSME) के लिये सुरक्षा निर्धारित करता है, तो ऐसे निदेशों के साथ असंगत संविदात्मक शर्तों को लागू नहीं किया जा सकता।
- सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया बनाम रविंद्र (2002) के मामले पर विश्वास करते हुए , न्यायालय ने माना कि RBI के परिपत्र वाणिज्यिक बैंकों के लिये बाध्यकारी हैं, और ICICI बैंक बनाम आधिकारिक परिसमापक (2010) के अनुसार संविदा की शर्तें RBI के निदेशों को अधिभावी नहीं कर सकती हैं।
- न्यायालय ने पाया कि किसी भार का सार, न कि उसका लेबल, उसकी वैधता अवधारित करता है—"पूर्व भुगतान पर प्रसंस्करण शुल्क" या "स्विचओवर भार" जैसे प्रच्छन्न पूर्व भुगतान भार अवैध ज़ब्ती शुल्क हैं। बैंक द्वारा बाद में 4% से घटाकर 2% करने से मूल अवैधता का समाधान नहीं हो सकता।
- LIC ऑफ इंडिया बनाम उपभोक्ता शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र (1995) का हवाला देते हुए, न्यायालय ने कहा कि " डॉटी लाइन कॉन्ट्रैक्ट" में अनुचित संविदा शर्तों को, जहाँ कमजोर पक्षकारों के पास सौदेबाजी की शक्ति का अभाव है, खारिज किया जा सकता है।
- न्यायालय ने माना कि पुरोबंध शास्ति प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 की धारा 3 के अधीन प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यवहार है, जो प्रतिस्पर्धा को रोकता है और ऋण बाजार में उपभोक्ता के विकल्प को सीमित करता है।
- न्यायालय ने कहा कि यदि ऋण स्वीकृति में पुरोबंध भार की शर्तें शामिल हों, तो भी ऐसी धाराएँ बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 21 और 35क के अधीन RBI के बाध्यकारी आदेशों से टकराएंगी, और स्वतः ही निरस्त हो जाएंगी।
- न्यायालय ने माना कि सांविधिक रूप से निषिद्ध मांगों के आधार पर मूल स्वामित्व विलेख जारी करने से बैंक का इंकार, अधिकार का दुरुपयोग है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 300-क का उल्लंघन है।
- न्यायालय ने इंडियन बैंक को निदेश दिया कि वह याचिकाकर्त्ता के संपत्ति दस्तावेज़ों को पुरोबंध भार पर बल दिये बिना तुरंत जारी करे, तथा एक महीने के भीतर अनुपालन शपथपत्र दाखिल करने का आदेश दिया।
पुरोबंध भार क्या हैं?
बारे में:
- पुरोबंध भार, जिसे पूर्वभुगतान शास्ति के रूप में भी जाना जाता है, बैंकों द्वारा लगाया जाने वाला भार है, जब कोई उधारकर्त्ता निर्धारित परिपक्वता तिथि से पहले ऋण चुका देता है।
- ऐतिहासिक रूप से इन भारों को शेष ऋण अवधि से प्रत्याशित ब्याज आय की हानि के लिये बैंकों को क्षतिपूर्ति के रूप में उचित ठहराया गया था।
- बैंकों ने तर्क दिया कि जब उधारकर्त्ता ऋण का समयपूर्व संदाय करते हैं, विशेष रूप से बेहतर ब्याज दर की पेशकश करने वाले प्रतिस्पर्धी ऋणदाताओं के पास जाने के लिये, तो इससे उनके राजस्व पूर्वानुमान और नकदी प्रवाह की योजना बाधित होती है।
- यद्यपी, ऐसे भार शीघ्र पुनर्भुगतान और ऋण पुनर्वित्त के लिये बाधक के रूप में कार्य करते हैं, तथा ऋण बाजार में उधारकर्त्ता की गतिशीलता और उपभोक्ता विकल्प को सीमित करते हैं।
- ऋण गतिशीलता को बढ़ावा देने और प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रथाओं को रोकने के लिये RBI द्वारा विभिन्न परिपत्रों के माध्यम से प्पुरोबंध भार लगाने पर क्रमिक रूप से प्रतिबंध लगाया गया है।
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (MSME) संरक्षण का समर्थन करने वाला सांविधिक ढाँचा:
- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 की धारा 10 में समय पर और निर्बाध ऋण प्रवाह सुनिश्चित करने के लिये RBI के दिशानिर्देशों के अनुरूप सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (MSME) के लिये प्रगतिशील ऋण नीतियों के निर्माण का प्रावधान है।
- बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 21, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को बैंकिंग कंपनियों की ऋण एवं उधार देने की प्रथाओं को विनियमित करने का अधिकार प्रदान करती है; तथा धारा 21(3) यह अनिवार्य करती है कि प्रत्येक बैंकिंग कंपनी, RBI द्वारा जारी सभी निदेशों का अनुपालन करेगी।
- बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 35क, RBI को जनहित में बैंकिंग परिचालनों में हस्तक्षेप करने के लिये व्यापक अधिकार प्रदान करती है।
- भारतीय बैंकिंग संहिता एवं मानक बोर्ड (BCSBI) ने सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों के लिये बैंक की प्रतिबद्धता संहिता तैयार की है, जिसमें निष्पक्ष एवं पारदर्शी बैंकिंग प्रथाओं के न्यूनतम मानक निर्धारित किये गए हैं।
पुरोबंध भार की प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रकृति:
- प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 की धारा 3(1) ऐसे करारों पर रोक लगाती है जो प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं या पड़ने की संभावना रखते हैं।
- धारा 3(3)(ख) के अधीन प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रभावों की उपधारणा तब उत्पन्न होती है, जब कोई ऐसी प्रथा हो जिसके परिणामस्वरूप सेवाओं के प्रावधान में सीमा या नियंत्रण होता है।
- पुरोबंध शास्ति उधारकर्त्ताओं को विशेष संस्थाओं से बंधे रहने के लिये बाध्य करके प्रतिस्पर्धा को बाधित करती है, तथा व्यापार की स्वतंत्रता और उपभोक्ता की पसंद पर अनुचित प्रतिबंध अधिरोपित करती है।